Book Title: Maro Swadhyaya
Author(s): Divyaratnavijay
Publisher: Shraman Seva Parivar

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Page 229
________________ पार्श्व मुद्रा पराङ्मुखहस्ताभ्यां वेणीबन्धं विधायाभिमुखीकृत्य तर्जन्यसंश्लेष्य शेषांगुलिमध्येऽङ्गुष्ठद्वयं विन्यसेदिति पार्श्व मुद्रा। अर्थ : नीचे की ओर मुख किये हुए दोनों हाथों से वेणीबन्ध बनाना अर्थात् परस्पर में दोनों हाथों की अंगुलियों को एक दूसरे से गूंथना, फिर वेणीबन्ध किये हुए दोनों हाथों को एक दूसरे के सम्मुख करके, दोनों हाथ की तर्जनी अंगुलियों को परस्पर में सम्बद्ध करना, तत्पश्चात् शेष अंगुलियों के मध्य में दोनों अंगुष्ठों को रखना पार्श्व मुद्रा है । .34. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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