Book Title: Maro Swadhyaya
Author(s): Divyaratnavijay
Publisher: Shraman Seva Parivar

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Page 239
________________ मृगी मुद्रा मध्यमा और अनामिका मिलाना। दोनों अंगुलियों के दूसरे पर्व के अग्रभाग पर अंगुष्ठ को रखने से तर्जनी और कनिष्ठिका को सीधा रखने से बनती है । लाभ : मृगवत् सरलता सहजता के भावों की प्राप्ति । नम्रता की प्राप्ति । आहुति में यह मुद्रा उपयोगी है। उपयोग : दांत, सायन्स शरदी से शीरदर्द में राहत और मानसकि शांति के लिए। हंसी मुद्रा फोटा को अच्छी तरह से देखने से कर सकते हैं । लाभ: हंस के समान विवेकता की प्राप्ति । आहुति के वक्त यह मुद्रा करके मध्यमा के अग्रभाग पर आहुति द्रव्य रखकर आहुति देने से धन, धान्य विजय आदि इच्छित फल की प्राप्ति होती है। उपयोग: राजसिक और मानसिक शक्ति बढ़ाने के लिए । 44 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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