Book Title: Maro Swadhyaya
Author(s): Divyaratnavijay
Publisher: Shraman Seva Parivar

View full book text
Previous | Next

Page 240
________________ पृथ्वीसुरभि मुद्रा सुरभि मुद्रा करके दोनों अंगुष्ठो के अग्रभाग को अनामिका के पर्व पर रखने से बनती है। लाभ : पृथ्वीतत्त्वजन्य अग्नितत्त्वजन्य रोग में राहत होती है । उदररोग में लाभकारी है । उपयोग : कफ प्रकृति के लिए, पाचन संबंधी रोगो के लिए और शरीर की जडता व स्थूल का दूर करने के लिए। जलसुरभि मुद्रा सुरभि मुद्रा करके दोनों अंगुष्ठो के अग्रभाग को दोनों कनिष्ठिका के पर्व पर लगाने से बनती है। लाभ : पित्तजन्य रोग में राहत । जलजन्य रोग में कीडनी के रोग में तथा Urine के रोग में लाभ । उपयोग : पित प्रकृति, कीडनी और मूत्र जन्य रोगों के लिए । • 45. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org/

Loading...

Page Navigation
1 ... 238 239 240 241 242 243 244