Book Title: Maro Swadhyaya
Author(s): Divyaratnavijay
Publisher: Shraman Seva Parivar

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Page 241
________________ वायुसुरभि मुद्रा शून्यसुरभि मुद्रा • सुरभि मुद्रा करके दोनों अंगुष्ठों |. सुरभि मुद्रा करके दोनों अंगुष्ठो के अग्रभाग को तर्जनी के पर्व के अग्रभाग को मध्यमा के पर्व पर लगाने से बनती है। पर रखने से बनती है। लाभः वायुजन्य रोग मेंराहत।मनकी| लाभ : अन्तरमुखी जीवन में लाभ। चंचलता का नाश । ध्यान-. शान्ति, आनन्द, प्रफुल्लिता भाव का विकास होता है। जप में अत्यन्त उपयोगी है। | उपयोग : कान के दर्द को दूर करने उपयोग : ध्यान व जाप में | के लिए । अंतरसमृद्धि स्थिरता प्राप्त करने हेतु । बढाने के लिए। नोंध : विधान तथा रोगोपशमन वक्त मुद्रा कब कितने समय तक करनी चाहिए उनका ज्ञान प्राप्त करके मुद्रा का उपयोग करना। .46. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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