Book Title: Maro Swadhyaya
Author(s): Divyaratnavijay
Publisher: Shraman Seva Parivar

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Page 234
________________ ज्ञानध्यान मुद्रा दो हाथों एकत्र करके हाथ के हस्ततल पर दायाँ हाथ रखकर सुखासन या पद्मासन करके नाभि पास हाथ रखने से ज्ञानध्यान मुद्रा होती है। लाभ : ज्ञानमुद्रा से प्राप्त होने वाले सभी लाभ होते हैं। तथा ध्यान में प्रगति होती है । ज्ञान मुद्रा तर्जनी अंगुलि और अंगुष्टों के अग्रभाग को एकत्रित करके मध्यमा, अनामिका तथा कनिष्ठका साथ में रखकर सीधी करने से ज्ञान मुद्रा बनती है। लाभ : ज्ञानतंतु क्रियावंत होते हैं । स्मरण शक्ति, एकाग्रता, प्रसन्नता की वृद्धि होती है अनिद्रा के रोग में लाभदायी है । यह मुद्रा को सरस्वती मुद्रा भी कहते हैं। Pitutory और Pencal उपयोग : अनिद्रा, Maygrain, शरीर के मास्टर ग्लान्ड रोगो में उपयोगी । 39 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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