Book Title: Maro Swadhyaya
Author(s): Divyaratnavijay
Publisher: Shraman Seva Parivar

View full book text
Previous | Next

Page 232
________________ योनि मुद्रा (२) वामहस्तांगुलितर्जन्या कनिष्ठिकामाक्रम्य तर्जन्यग्रं मध्य-मया कनिष्ठिकाग्र पुनरनामिकया आकुंच्य मध्येऽङ्गुष्ठं निक्षिपेदिति योनिमुद्रा। अर्थ : बाँये हाथ की तर्जनी अंगुली से कनिष्ठिका अंगुली को पकड़ना फिर तर्जनी अंगुली के अग्र भाग को मध्यमा अंगुली से पकड़ना पुनः कनिष्ठिका अंगुली के अग्रभाग को अनामिका अंगुली से पकड़कर अथवा झुकाकर बीच के भाग में अंगुष्ठ को रखना योनि मुद्रा है। .37. ain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244