Book Title: Maro Swadhyaya
Author(s): Divyaratnavijay
Publisher: Shraman Seva Parivar

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Page 220
________________ पर्वत [ गिरि] मुद्रा उभयोः करयोरनामिकामध्यमे परस्परानभिमुखे ऊर्ध्वकृत्य मीलयेच्छेषांगुली: पातयेदिति पर्वतमुद्रा । अर्थ : विपरीत मुखवाली दोनों हाथों को अनामिका अंगुलियों और मध्यमा अंगुलीयों को उपर उठाकर परस्पर मिलाना और शेष अंगुलियों को नीचे गिराना पर्वत मुद्रा है। उपयोग : पर्वत की तरह स्थिरतागुण की प्राप्ति। चंचलता का नाश । वायु जन्य रोग निवारण । .25. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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