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मत्स्य मुद्रा
बायें हाथ पर दायें हाथ रखकर अंगुष्ठ को अलग करने से बनती है ।
उपयोग : यह जलतत्त्व की मुद्रा है जल जन्य रोग का प्रतिकार होता । अनुष्ठान में सामग्री की शुद्धि इस मुद्रा से होती है ।
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