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पर्वत [ गिरि] मुद्रा
उभयोः करयोरनामिकामध्यमे परस्परानभिमुखे ऊर्ध्वकृत्य
मीलयेच्छेषांगुली: पातयेदिति पर्वतमुद्रा । अर्थ : विपरीत मुखवाली दोनों हाथों को अनामिका अंगुलियों और
मध्यमा अंगुलीयों को उपर उठाकर परस्पर मिलाना और शेष
अंगुलियों को नीचे गिराना पर्वत मुद्रा है। उपयोग : पर्वत की तरह स्थिरतागुण की प्राप्ति। चंचलता का नाश ।
वायु जन्य रोग निवारण ।
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