________________
संनिधान मुद्रा ( आगे का भाग )
संलग्नमुष्ट्युच्छ्रितांगुष्ठौ करौ संनिधानी ।
अर्थ : संलग्न मुट्ठीवाले दोनों हाथों के अंगुष्ठों को ऊपर करना संनिधानी मुद्रा है ।
उपयोग : आमंत्रित आराध्यको अनुष्ठान पर्यंत स्थायी बनने हेतु
विनंती ।
• 5 •
Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org