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निर्बज सौभाग्य मुद्रा [आगे का भाग]
दोनों हाथ जोड़कर दोनों मध्यमा अङ्गली को सीधी करके दोनों अनामिका को तर्जनी से पकड़ना, कनिष्ठिका को अनामिका के पीछे रखना और कनिष्ठिका के तृतीय पर्व पर अंगुष्ठों को रखने
से निर्बज सौभाग्य मुद्रा बनती है। उपयोग : सौभाग्यमय जीवन बनाने हेतु, सौभाग्य प्राप्त हेतु पुरुषतत्त्व
प्रधान साधना में प्रयुक्त है।
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