________________
धेनु - सुरभि मुद्रा - ( अधोमुख)
अन्योऽन्यग्रथितांगुलीषु कनिष्ठिकानामिकायोर्मध्यमातर्ज्जन्योश्च संयोजनेन गोस्तनाकारा धेनुमुद्रा ।
अर्थ : परस्पर दोनों हाथों की गुंथी हुई अंगुलीयों में कनिष्ठिका को अनामिका के साथ संयोजित करने से और मध्यमा अंगुली को तर्जनी अंगुली के साथ संयोजित करने से गोस्तन आकारवाली धेनु मुद्रा होती है
I
उपयोग : अधोमुख तत्त्वों को पदार्थों को जीवंत - सचेतन करना, प्राण प्रतिष्ठा के वक्त उपयुक्त ।
ПЕРЕ
• 17.
Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org