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निर्वाणसूत्र
सव्वे सरा नियटृति, तक्का जत्थ न विज्जइ ।। मई तत्थ न गाहिया, ओए अप्पइट्ठाणस्स खेयन्ने ॥१॥ ___जहाँ से सारे स्वर लौट जाते हैं, जहाँ तर्क का प्रवेश नहीं है, जिसे बुद्धि ग्रहण नहीं कर सकती, जो ओज-प्रतिष्ठान-खेद रहित है, वही मोक्ष
ण वि दुक्खं ण वि सुक्खं, ण वि पीडा णेव विज्जदे बाहा । ण वि मरणं ण वि जणणं, तत्थेव य होइ णिव्वाणं ॥२॥
जहाँ न दुःख है न सुख, न पीड़ा है न बाधा, न मरण है न जन्म, वहीं निर्वाण है। ण वि इंदिय उवसग्गा, ण वि मोहो विम्हयो ण णिद्दा य । ण य तिण्हा व छुहा, तत्थेव य होइ णिव्वाणं ॥३॥ ___ जहाँ न इन्द्रियाँ हैं न उपसर्ग, न मोह हैं न विस्मय, न निद्रा है न तृष्णा और न भूख, वहीं निर्वाण है। ण वि कम्मं णोकम्मं, ण वि चिंता णेव अट्टरुद्दाणि । ण वि धम्मसुक्कझाणे, तत्थेव य होइ णिव्वाणं ॥४॥ ___जहाँ न कर्म है न नोकर्म, न चिन्ता है न आर्त-रौद्र ध्यान, न धर्मध्यान है और न शुक्लध्यान, वहीं निर्वाण है ।
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