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णाणाजीवा णाणाकम्मं, णाणाविहं हवे लद्धी । तम्हा वयणविवाद, सगपरसमएहिं वज्जिज्जा ॥२॥
इस संसार में नाना प्रकार के जीव हैं, नाना प्रकार के कर्म हैं, नाना प्रकार की लब्धियाँ हैं, इसलिए कोई स्वधर्मी हो या परधर्मी, किसी के भी साथ वचन - विवाद करना उचित नहीं ।
चक्खुसा पडिलेहित्ता, पमज्जेज्ज जयं जई । आइए निक्खिवेज्जा वा, दुहओवि समिए सया ॥३॥
यतना (विवेक) पूर्वक प्रवृत्ति करने वाला अपने दोनों प्रकार के उपकरणों को आँखों से देखकर तथा प्रमार्जन करके उठाये और रखे। यही आदाननिक्षेपण समिति है । अर्थात् किसी भी वस्तु को विवेकपूर्वक उठाना रखना चाहिए ।
खेत्तस्सवई णयरस्स, खाइया अहव होइ पायारो । तह पावस्स णिरोहो, ताओ गुत्तीओ साहुस्स ॥४॥
जैसे खेत की रक्षा बाड़ और नगर की रक्षा खाई या प्रकार करते हैं, वैसे ही पाप-निरोधक गुप्तियाँ साधु के संयम की रक्षा करती हैं ।
तपसूत्र
हियाहारा मियाहारा, अप्पाहारा य जे नरा ।
न ते विज्जा तिगिच्छंति, अप्पाणं ते तिगिच्छगा ॥१॥
जो मनुष्य हित-मित तथा अल्प आहार करते हैं, उन्हें कभी वैद्य से
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