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आत्म-मोक्षसूत्र जीवा हंवति तिविहा, बहिरप्पा तह य अंतरप्पा य । तच्चाण परं तच्चं, जीवं जाणेह णिच्छयदो ॥१॥
जीव (आत्मा) तीन प्रकार का है--बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा । परमात्मा के दो प्रकार हैं-अर्हत् और सिद्ध । णिइंडो णिद्वन्दो, णिम्मणो णिक्कलो णिरालंबो। णीरागो णिद्दोसो, णिम्मूढो णिब्भयो अप्पा ॥२॥
आत्म वचन-वचन-कायरूप त्रिदंड से रहित, निर्द्वन्द्व, निर्ममममत्वरहित, निष्कल-शरीररहित, निरालम्ब, रागरहित, निर्दोष, मोहरहित तथा निर्भय है। णिग्गंथो णीरागो, णिस्सल्लो सयलदोसणिम्मको। णिक्कामो णिक्कोहो, णिम्माणो णिम्मदो अप्पा ॥४॥ - वह आत्मा निर्ग्रन्थ-ग्रन्थिरहित, नीराग, नि:शल्य सर्व दोष मुक्त, निष्काम, निष्क्रोध, निर्मान तथा निर्मद है। सद्दहदि य पत्तेदि य, रोचेदि य तह पुणो य फासेदि । धम्मं भोगणिमित्तं, ण दु सो कम्मक्खयणिमित्तं ॥५॥
अभव्य जीव यद्यपि धर्म में श्रद्धा रखता है, उसकी प्रतीति करता है, उसमें रुचि रखता है, उसका पालन भी करता है, किन्तु यह सब वह धर्म को भोग का निमित्त समझकर करता है, कर्मक्षय का कारण समझकर नहीं।
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