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માનનીય વિનોબાજીનું પુરોવચન महावीर वाणी का गुजराती संस्करण निकल रहा है, यह खुशी की बात है। इधर बिहार में भूदान-यज्ञ के सिलसिले में घूमते हुओ बुद्ध और महावीर का मुझे निरंतर स्मरण रहा है। लोग जानते है मैंने बोधगया में समन्वय आश्रम शुरू कर दिया है। कोई नया आरंभ करने की वृत्ति अपने में मैं नहीं देखता । लेकिन भूदान की प्रवृत्ति में से समन्वय की प्रवृत्ति अनिवार्य रूप से निकल पडी।
भारत भूमि में आत्मा का चिंतन, मनन और संशोधन बहुत प्राचीन काल से आजतक होता आया है। उसमें वैदिक बौद्ध और श्रवण तीन शाखाऐं चली आई हैं। तीनो शाखाओं में अनेक संत पुरुष निर्माण हुए
और उनके विविध पंथ चले । इन पंथो में सीखों का भी एक पंथ है, जो कि आज विशेष संघटना के कारण अपने को अलग धर्म मानने लगे हैं। पर है वह एक उपासना पंथ ही । भारत के बाहर के धर्म प्रवाह भी भारतीय संस्कृति में दाखिल हो गये हैं। पारसी तो भारत के ही हो गये हैं, याने भारत के बाहर के वे मिट गये हैं। ख्रिस्ती, मुसलमान, यहूदी तीनों जमातों ने भारत को अपनाया और आज इन तीनों का अपना एक भारतीय रूप भी है। इस तरह औतिहासिक प्रवाह में भारत देश धर्म-विचारों का संगम स्थान हो गया है।
यह तिहासिक कार्य तभी पूर्ण होगा जब की हमारे जीवनदर्शन में ईन सब का हम समन्वय कर लेंगे। इस के लिये हर धर्म की सारभूत कोई चीज हमे मिल जाती हैं तो बडी सहूलियत होती है।
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