________________
महावीर : मेरो दृष्टि में
नहीं चला। जिसे ज्योति का पता चल जाए उसे दिये की याद भी रहेगी ? उसे दिया फिर दिखाई भी पड़ेगा ? जिसे ज्योति दिख जाए, वह दिये को भूल जाएगा। इसलिए जो दिये को याद रखे हैं उन्हें ज्योति नहीं दिखी है और जो ज्योति को प्रेम करेगा, वह इस ज्योति को या उस ज्योति को थोड़े ही प्रेम. करेगा, वह जो ज्योतिर्मय है उसे ही इंम करेगा । जब एक ज्योति में बंध जाएगा उसे तो कहीं भी ज्योति है, वहीं दिख जाएगी - सूरज में भी घर में जलने वाले छोटे से दिये में भी, चांद-तारे में भी आग में-जहां कहीं भी ज्योति है, वहीं दिख जाएगी। लेकिन अनुयायी व्यक्तियों से बंधे हैं । विरोधी भी व्यक्तियों से बंधे हैं । प्रेमी भर को व्यक्ति से बंधने की कोई जरूरत नहीं ।
•
"
•
तो मैं प्रेमी हूं। और इसलिए मेरा कोई बंधन नहीं है महावीर से । श्रौर बंधन न हो तो ही समझ हो सकती है-अण्डरस्टैंडिंग हो सकती है ।
यह भी ध्यान में रखना जरूरी है कि महावीर को चर्चा के लिए क्यों चुनें? बहाना है सिर्फ । जैसे खूंटी होती है। कपड़ा टांगना, प्रयोजन होता है। खूंटी कोई भी काम दे सकती है। महावीर भी काम दे सकते हैं ज्योति के स्मरण में, बुद्ध भी, कृष्ण भी, क्राइस्ट भी । किसी भी खूंटी से काम लिया जा सकता है । स्मरण उस ज्योति का जो हमारे दिये में भी जल सकती है ! स्मरण प्रेम मांगता है, अनुकरण नहीं । और वह स्मरण भी महावीर का जब
हम करते हैं, तो भी महावीर का
स्मरण नहीं है वह ।
और उस तत्व का
स्मररण है उस तत्व स्मरण आ जाए तो और वही सार्थक है जो आत्म-स्मरण की पूजा से यह नहीं होता । पूजा से आत्म
।
।
का जो महावीर में प्रकट हुआ तत्काल आत्म-स्मरण बन जाता है तरफ ले जाए। लेकिन महावीर की स्मरण नहीं आता ! बड़ी मजे की बात 1
पूजा आत्म-विस्मरण का उपाय है। जो अपने को भूलना चाहते हैं वे पूजा में लग जाते हैं । उनके लिए भी महावीर खूंटी का काम देते हैं, बुद्ध, कृष्णसब खूंटी का काम देते हैं । जिसे अपने को भूलना है वे अपने भूलने का वस्त्र खूंटी पर टांग देते हैं । अनुयायी, भक्त, अन्धे अनुकरण करने वाले भी महावीर, बुद्ध, कृष्ण की खूंटियों का उपयोग कर रहे हैं, आत्म-विस्मरण के लिए । पूजा, प्रार्थना, अर्चना सब विस्मरण है ।
स्मरण बहुत और बात है । स्मरण का अर्थ है कि हम महावीर में उस सार को खोज पाए - किसी में भी, कहीं से भी । वह सार हमें दिख जाए; उसकी एक