Book Title: Mahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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सादगी और गरीबाई की हालत में निश्चित वृत्ति है और इज्जत घाबरू हैं तो वह सादा गरीब मनुष्य भी भाग्यवान समझा जाता है । दरअसल देखा जाय तो खर्च योग्य नहीं कमाने वाला पुरुष कितनी ही विलास - सामग्री भोगते हुए भी उसके चित्त में शान्ति अथवा आराम नहीं होता है कि जो मजूरी करके पेट भरने वाले साधारण मनुष्य को कुदरत ने दिया है ।
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श्रीमान् लोग भी उत्तेजक फैशन से अपने घर में नैतिक मलीनता को स्थान न देते वाजवी शोभा रखें और अपनी लक्ष्मी का ऐसे खोटे रास्ते उपयोग न करते देशसेवा अथवा धर्मसेवा में अधिक उपयोग करें ताकि उससे जैन समाज को लाभ हो सके छोटी उम्र में बालबच्चों पर जो संस्कार डाले जाते हैं वैसा ही उनका जीवन घटित होता है। यही कारण है कि श्रीमानों के घर में बालक बालिकायें बचपन में ही फैशन की बुरी चलन में पड़ जाती हैं । अतः एव बड़ी उम्र में उनका जीवन कलुषित बन जाता है ।
सुशीला पत्नी ऐसी होनी चाहिए कि अगर आधे से काम चलता हो तो पूरे के लिए अपने पति को तकलीफ में न डालना चाहिए और साथ ही साथ पति को भी अपनी पत्नी की तरफ ऐसा वात्सल्य भाव रखना चाहिए कि शक्ति अनुसार अपनी पत्नी को राजी रखने को आना कानी न करे । दम्पत्ती का जीवन व्यवहार परस्पर हार्दिक सहानुभूति और श्रद्धा - स्नेह पूर्वक चलने में उन दोनों का कल्याण हैं ।
परन्तु जब पुरुष लोग ही उद्भट वेष- विन्यास पहिने तब उनकी पत्नियों पर उनका कैसा असर होता है यदि वे अपनी पत्नियों को सादगी का पाठ सिखाना चाहते हों तो पहिले उनको यह पाठ खुद ही सीखना चाहिए तब ही उसका असर दूसरों पर हो सकता है ।
पहिले कहा उसी माफिक अक्सर पुरुष के दुर्व्यसन उनकी पत्निओं में दाखिल होते हैं जो उनको आगे जाकर त्रास रूप हो जाते हैं । पति तो दुराचरण की अंधेरी रंग भूमि पर तामसिक खेल करता है और अपनी पत्नी को सदाचारिणी बनाकर रखता है इसमें कितनी बड़ी समझ है ? अपनी पत्नी को सदाचारिणी देखने वाले इच्छनार पति को सदाचारी बनना चाहिए। पति की दुराचारी हालत में पत्नी सदाचारिणी बनी रहे यह बहुत मुश्किल है और इस मुश्किली को पार करने वाली पत्नी निस्सन्देह वन्दन करने योग्य है ।