Book Title: Mahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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बाग में खेलनेवाला बच्चा अपनी इन्द्रियों के स्नायुओं को शिक्षा देता था वह पतारों के बीच के अन्तर का अनुमान करने में अपनी आँख और पत्थर भरने की क्रिया में आवश्यकीय अपनी बुद्धि को शिक्षा देता था। इतना ही नहीं पातु वह एक किसी निश्चित काम को करने की शक्ति को शिक्षा देता था। परन्तु प्राया जो उसको खूब चाहती थी और वह ऐसा मानती थी कि बच्चे को हुन पत्थरों की जरूरत है और इस मान्यता से वह बच्चे के जीवन को दुःखी करती थी।
नियमन में दूसरी अगत्य बात बच्चा अपने मन पपन्द प्रवृति का पारम्बार कितना पुनरावर्तन करता है। प्रवृति का पुनरावर्तन अन्तर रस का साक्षी है नियमन के मार्ग में जाते बालक में ऐसा पुनरावर्तन स्वाभाविक है। बच्चे का सच्चा ज्ञान या शक्ति पुनरावर्तन में से ही जागृत होती है ।
बच्चा दरअसल कुछ सीखा है या क्या ? उसकी तसदीक उस पर से हो सकेगी कि वह सीखी हुई वस्तु का कितनी बार पुनरावर्तन करता है। कोई भी बात सीखे बाद यदि बच्चा आनन्दपूर्वक, सन्तोषपूर्वक, उसको बार २ करने में भानन्द का अनुभव करे तो समझना चाहिये कि उसको सच्चा ज्ञान हुआ है
और वह विकाश के सच्चे मार्ग पर है इससे उलटा हमारी पाठशालाओं के अन्दर पुनरावर्तन की मुमानियत है। जब शिक्षक विद्यार्थी को पूछता है तब जिनको प्रश्नों का उत्तर प्राता हो वे उत्तर देने को ऊंचे नीचे होते हैं। वे अपने हासिल शान का पुनरावर्तन मांगते हैं परन्तु वहां तो शिक्षक कहता है "तुम नहीं, तुमको माता" और जिसको नहीं आता है उनसे सवाल पूछता है परन्तु वे उसका उसर नहीं दे सकते हैं । जो जानते हैं उनको नहीं पूछा जाता है और जो नहीं जानते हैं उनसे पूछा जाता है कारण यह है कि हम यह मान बैठे हैं कि किसी भी विषय के ज्ञान की परिसमाप्ति एक दफा ज्ञान हो जाने में है न कि उसके पुनरावर्तन में।
परन्तु हमको अनुभव है कि हमको जिसकी बहुत ही इच्छा है और हम बिसको बहुत चाहते हैं और सिजके लिये हमारी अन्दर की चाह है उसको हम पार २ किया करते हैं एक बार भूली हुई सङ्गीत के चीजों की पंक्ति हम बार २ गाते हैं। जो किस्सा कहानी हमें पसन्द है। और जिसको हम बहुत अच्छी