Book Title: Mahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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जैसा करने से वे सच्ची समूहगत व्यवस्था सीख भी नहीं सकेंगे । जो अगत्य की बात है वह उनके मन पर अमुक तत्व अथवा विचार की छाप बिठाने का है फिर वे उस विचार को धीरे २ अपना करके व्यवहार में रख सकेंगे ।
एक दफा व्यवस्थितपन का खयाल माने बाद तो बच्चे अपनी जगह से उठेंगे इधर उधर फिरेंगे, बात करेंगे, जगह की अदला बदली करेंगे परन्तु वह बिना विचार अथवा बिना जाने नहीं करेंगे । शान्ति और व्यवस्था के सच्चे खयाल के बाद वे ऐच्छिक क्रिया करने को जायेंगे। अमुक काम करने की रुकावट है इसका ज्ञान होने से वे समझ सकेंगे कि यह नया खयाल उनके लिये अच्छा है या खगब है? उसके बीच में विवेक काम में लाने का नया उत्साह प्रेरित होगा व्यवस्था उत्पन्न हुए बाद दिन ब दिन बच्चों की हालचाल अधिक सम्पूर्ण और सहायक होती जायगी वे खुद के काम का विचार करना सीखेंगे। शुरू ही शुरू की अव्यवस्था में से बच्चे धीरे २ कैसे व्यवस्थित हुए उसके अवलोकन की नोट बुक ही शिक्षक के पढ़ाने का ग्रन्थ है। दरअसल शिक्षक सच्चा शिक्षक होना चाहता हो तो उसको ये ही पढने की और इसका अभ्यास करने की आवश्यकता है । प्रथम ही प्रथम बच्चे की अव्यवस्थित हील चाल में उसकी रुख नहीं मालूम होती है परन्तु जब उसमें व्यवस्था आती है तब वह अपने आन्तरिक रूख के अनुकूल प्रवृत्ति करने लगता है और उसके द्वारा वह अपने आपको व्यक्त करता है । यदि ऐसा हम उसको करने दें तो वैयक्तिक फेर फार अच्छी तरह से मालूम हो सकते हैं और हम अजायबी पर ताज्जुब करने लग जाते हैं स्वतंत्र और जागृत अर्थात् व्यवस्थित बच्चा ही अपने आप को प्रगट कर सकता है ।
बालगृह में अनेक तरह के बच्चे देखने में भायेंगे बहुत से अपनी जगह पर आलस से बैठे हुए, बेदरकार और निद्रावाले मालूम होंगे और बहुत से ऐसे लोग जो लड़ने वाले हों, अथवा दूसरे पदार्थों का ऊंचे नीचे करने वाले अथवा अपनी जगह को छोड़ कर इधर उधर फिरते होंगे तो बहुत से ऐसे भी होंगे जो अमुक हेतु पार पाड़ने के लिये टेबल फिराते होंगे अथवा अमुक जगह कुर्सी पर बैठने के लिये कुर्सी फिराते होंगे अथवा चित्र देखते रहेंगे। बहुत से मानसिक विकाश में पीछे मालूम होंगे, बहुत से शरीर से बीमार होंगे, बहुत से
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