Book Title: Mahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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बदामी रंग विधि नम्बर ६ में हीराकष प्रयुक्त होता है। कपड़े पर हीराका का पानी अच्छी तरह न लगने से चूना देने पर कपड़े पर जगह-जगह धब्बे पड़ जाते हैं । ऐसा होने पर कपड़े पर का रंग साफ करना बहुत जरूरी
पानी व ओग्जेलिक एसिड ( Oxalic Acid ) घोल कर (प.नी २० भाग, अमल १ भाग ) इसमें कपड़े को भिगोने से सब रंग घुल जाता है। इस अमल की जगह नींबू का रस भी काम में लाया जा सकता है, परन्तु इससे बहुत देर में रंग छूटता है।
खूना के बदले सोड़ा का प्रयोग करने से काम चल सकता है और कपड़े पर सहज ही रंग चढ़ाया जा जाता है।
नील का रंग विधि नम्बर १४ से कपड़े को घना नीला या काला नीला रंगने में कपड़े को कई बार नील के पानी में रंगना पड़ेगा, इसलिये इस रंग में बहुत व्यय होगा। यदि तीन बार रंगने से कपड़े पर उब्बल नीला रंग आा जावे तो विधि नम्बर ७ के अनुसार कपड़े पर केवल एक बार काला रंग चढ़ाने से बहुत अच्छा काला चमकेगा ।
वस्तुओं का परिमाण - प्रयोग में दिये हुए परिमाणों में जो तौल दिये गये हैं, उनसे केवल एक साड़ी रंगी जा सकती है, क्योंकि एक समय में एक कपड़े पर सहज में रंग चढ़ सकता है। जो लोग रंगने के काम मे निपुण हो गये हैं वह परिमाण की दी हुई मात्राओं को बढ़ा कर दो या तीन साड़ी भी एक साथ रंग सकते हैं ।
नील- नील को पानी में घोल कर नील का पानी तैयार करने के लिये केवल एक ही उपाय बतलाया है। हिन्दुस्तान में अक्सर नील का सड़ा कर उसका पानी बनाया जाता है। नील एक माग, चूना एक भाग, सज्जी मिट्टी दो भाग, और पानी २०० या ३०० भाग, इन सब को एक साथ मिला कर एक मिट्टी के घड़े में रखिये । इसमें कुछ गुड़ और कुछ नील का सड़ा पानी मिला देने से नील घुल जाता है। नील घुल जाने पर विधि नम्बर १४ से कपड़ा रंगा जा सकता है। पुराना नील का पानी किसी रंगरेज से मिल जायगा । इस प्रकार से नील का पानी बना कर कपड़ा रंगने से वैसा उज्वल नहीं होता, परन्तु ज्यादा पक्का होता है ।