Book Title: Mahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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( १२७ )
( २ ) विधि नं० (१) के अनुसार सोडा और फिटकरी का पानी बना कर कपड़े को आध घण्टे तक भिगो कर निचोड़ लें और सुखा डालें मुखा कर कपड़े को १२ घंटे हवा में रक्खें ।
( ३ ) साबुन का पानी ५ सेर या १ गैलन, किसी बर्तन में लेकर साफ कपड़े को साबुन के पानी में छोड़ कर अाथ घंटे तक हिलाते रहिये । सुखा कर कपड़े को १२ घंटे तक हवा में छोड़ रक्खें। इसके बाद विधि (१) के अनुसार फिर फिटकरी- सोडे का पानी बना कर आध घंटे कपड़े को भिगो कर सुखा डालें । सुखा कर कपड़े को आध घंटे हवा में रक्खें। अब इस कपड़े पर रंग चढ़ाया जा सकता है। नं० (१), (२) और (३) विधियों के अनुसार सब काम करना बहुत ही आवश्यक है। नहीं तो कपड़े पर रंग नहीं चढ़ेगा ! (४) मंजिष्ठा का चूर्ण ( महीन ) ४ छटांक - ८ आउन्स, पानी ५ सेर - १ गैलन
मंजिष्ठा का चूर्ण मैदे के समान महीन होना चाहिये । मंजिष्ठा का चूर्ण पानी में छोड़ कर एक लकड़ी से कपड़े को अच्छी तरह चलाते रहिये, जिससे चूर्ण कपड़े में सर्वत्र अच्छी तरह लग जावे । इसके बाद कपड़े को बर्तन में - रख कर धीमी आंच पर गरम कीजिये । कपड़े को लकड़ी से हिलाते रहिये । इस तरह तीन घंटे तक उबाल कर कपड़े को निचोड़ कर अच्छी तरह झाड़ डालिये । उबालने के समय लकड़ी को चला कर जितना कपडे को हिलाते रहियेगा उतना ही एक-सा रंग कपड़े पर चढ़ेगा ।
( ५ ) सोड़ा १ बटांक - २ भाउन्स, पानी ५ सेर- १ गैलन
इसमें कपड़े को और आध घंटे तक उबाल लेने से कपड़े पर अच्छा पक्का रंग चढ़ेगा। इसके बाद ३,४ और ५ नियमों से कपड़े पर दो बार रंगने से और अधिक गाढ़ा रंग आता है ।
गरान की छाल ऊपर लिखे प्रयोग में इसका केवल दो बार वर्णन भाया है। इसके द्वारा और भी कई प्रकार का रंग बनाया जा सकता है । विधि नं० ३ में हर्रा के चूर्ण के साथ उतनी ही गरान की छाल मिला लेने से अच्छा कत्थई रंग बनता है। विधि नं० १३ में करीब आधा तोला गरान की छाल मिला लेने से चाकलेट रंग बनता है। विधि नं० १४ के द्वारा उब्बल नील चढ़ा कर विधि नं० ४ से गेरुप्रा रंग चढ़ाने से पका बैंगनी रंग बनेगा ।