Book Title: Mahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
View full book text
________________
के विषय सीखने नहीं पड़ते हैं। मोन्टीसोरी पद्धति मनुष्य की आँख को शिक्षित कर उसको रूप और रंग का रहस्य समझने का द्वार खोल देती है। स्पर्श की शिक्षा देकर कुदरत की अप्रितम कविता समझने की शक्ति देती है। कान को शिक्षित कर संगीत देवी का मंदिर खोल देती है। इस तरह मनुष्यों की शक्ति का विकाश कर मनुष्य स्वयं जो कुछ है उसको वैसा ही होने का प्रसंग देती है। मोन्टीसोरी साधनों को काम में लाने से मनुष्य एकदम चित्रकार अथवा गायक नहीं हो सकता है। एकदम लेखक, कवि अथवा गणितशात्री भी नहीं बन सकता । परन्तु वह किसी भी दिशा में जाने का सहज से सहज मार्ग बताती है इसलिये ये साधन मात्र साधन है साध्य नहीं हैं।
डॉ. मोन्टीसोरी ने जिन साधनों की योजना की है वे साधन परस्पर बहुत अगत्य का सम्बन्ध रखते हैं। एक २ साधन को मिन्न २ तौर से काम में लाने में कुछ अर्थ नहीं है। सारी साधन व्यवस्था बराबर समझने की है एक दसरा साधन एक दूसरे को अधिक समझने के लिये कैसे उपयोगी हो सकता है उसको जानना बहुत जरूरी है।
मोन्टीसोरी पद्धति में इन्द्रियों की शिक्षा यह एक विषय, चित्रकला की शिक्षा यह दूसरा विषय, लिखने पढ़ने की शिक्षा यह तीसरा विषय नहीं है। सारी पद्धति वृक्षरूप है इसके धड़ में इन्द्रियों की शिक्षा है और चित्रकला, लिखना पढ़ना भादि शाखायें और पत्तिएं हैं और वे धड़ से सम्बन्ध रखनेवाले भी बीज में से ही निकले हैं। किसी को ऐसा समझ कर भूल नहीं करना चाहिये कि अमुक एक या दोसाधन लेकर उनका इस्तमाल कराया जाय अर्थात् उस पर से यह प्रतित हो जायगा कि बच्चों में साधनों के काम लाने का लाभ प्रागया है । साधन समूह को काम में लाने की जरूरत है मकेला साधन निष्प्राण है, सब साधनों के साथ वह जीवन्त है । भूमिति की आकृतियों को काम में लाने में से लिखना
और चित्र काम दोनों की ही दिशा खुलती है, लम्बी सीढ़ी में से गणित और कद के प्रदेशों का मार्ग दिखता है। सादी हाथ धोने की स्वच्छता का लिखने के साथ सम्बन्ध है और रंग की पेटियों के ज्ञान को चित्रकला के साथ ताल्लुक है। मोन्टीसोरी पद्धति में अकेला अचरज्ञान, अकेला चित्र काम, अथवा अकेला संगीत ऐसा कुछ नहीं है। सब बातों के बिना मोन्टीसारी पद्धति कुछ काम योग्य