Book Title: Mahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan

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Page 94
________________ (१२) दूसरे सब साधनों से बच्चे अधिकतर पुनरावर्तन करते हैं। दट्टे की पेटी तो मुख्यतः जादू का काम करती है। .. डॉ. मोन्टीसोरी ने जो साधन बनाये हैं उसके विषय में एक ऐसा भी विचार है कि उसने इन साधनों को बनाकर संसार का बहुत कुछ मला किया है अलावा इसके प्रकृति जिस तरह मनुष्य को अनेक तरह की शिक्षा देती है उसी तरह मर्यादित स्थिति में उसी के सदृश इन साधनों से शिक्षा देने की योजना की है अर्थात् कुदरत ज्यों मनुष्य को अनुभव कराके अपने आप ही भूल सुधारने का ज्ञान देती है उसी तरह मोन्टीसोरी पद्धति बच्चे को ज्ञान देती है यह मान्यता मोन्टीसोरी सिद्धान्तों के विरुद्ध नहीं है। _डॉ. मोन्टीसोरी की योजना के साधन त्रिविध विकाश को सिद्ध करते हैं। मानसिक, नैतिक और शारीरिक इन्द्रियों के विकाश के अर्थ ढूंढे हुए साधन मात्र ही इन्द्रियों की शिक्षा सिद्ध नहीं करते हैं। इन्द्रियों के विकाश के लिये जो शक्ति काम में लाई जाती है उसके पीछे हमेशा विचार रहता है और इसी विचार के प्रवाह में मानसिक हो जाता है । आगे चलकर यह भी मालूम हो सकेगा कि साधनों को काम में लाने में नैतिक विकाश कैसे संभावित हो सकता है ? डॉ. मोन्टीसोरी के साधनों में एक दूसरी मी खूबी है। मोन्टीसोरी पद्धति का उद्देश मनुष्य को सीधे रास्ते शिक्षा देने का और पढ़ाने का नहीं है। इस पद्धति का उद्देश मनुष्य को अपने अन्तर आत्मा में जो कुछ रहा है उसको यथार्थ तौर पर व्यक्त करने की शक्ति देने का है। इसका उद्देश चित्रकला, संगीत, साहित्य, इतिहास, भूगोल, वनस्पति शास्त्र सीखने का नहीं है और ऐसा सीखने के लिये ये साधन नहीं रचे गये । मोन्टीसोरी पद्धति द्वारा जो कुछ सीखा जा सकता है वह पद्धति का प्रदेश नहीं है परन्तु पद्धति का परिणाम है । मोन्टीसोरी पद्धति मनुष्य को ज्ञान सम्पादन अथवा अन्तर शक्ति व्यक्त करने का हथियार देती । हरएक बच्चे के जीवन में एक ऐसा पल आता है कि उस वक्त बच्चा अपना अन्तर व्यक्त करना चाहता है उस पल में बच्चा सफलता-पूर्वक अपना और अपने मन की बात प्रदर्शित कर सकता है और इसीलिये डॉ. मोन्टीसोरी के साधनों का निर्माण हुआ है। मोन्टीसोरी पद्धति में अनेक तरह

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