Book Title: Mahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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अरि मुख घाब देते कूदे यवन दल में । "शिव" यो भनत तेरी कीरती कहां लों कहों, ..
___ काठ की कलम जिमि तृण अगाध जल में ॥ ६ ॥---- "कालू" का हल्ला सुनि यवन सैन्य ठह टूटे,
गजन के समूह कालशाह दलन छूटे हैं । इते कादशाह जू के छूटे सिंह सैन्य भौ,
विदारे भाल कुम्भन के चिंधरत भागे हैं ॥ ७ ॥ फौजें सब मांगी मुगल औ पठानन की, ...
मीर औ अमीर उमराव सब मारे हैं। "शिब" यो भनत जापे वार कालशाह करत,
सम्भरत नहीं प्राण लाख हूं सम्भारे हैं ॥८॥ बाही विधि जीत कालूशाह यवन भाग परी, ...
मीर' नहिं दीन्हें मान दिल्ली के झारे हैं । लाई सामदीन सुनि दातन ते होठ चावि,
___मनकू मसोस . निज खेमा . उपारे हैं॥ ९॥ पाही विधि बबनन को क्षण में संहार करि, .....
हर्षित मौ उल्लसित "रणथंभपुर" सिधारे हैं। जाइ निज राज हम्मीर को नवाइ माथ,
यवनन के झंडे मुकुट चरणन में डारे हैं॥ १०॥ ऐसे हु ऐसे कितनेक औ अनेक वीर,
प्राग्वाट ज्ञाति तूने भूतल पे जाये हैं। तिनके प्रताप. भौ अगाध शूरवीर तातें,
फारबस औ टाड तिनके सहस गुन गाये हैं ॥ ११ ॥ हाय हाय ताही की प्राजु गति कैसी भई,
"पोरवाल" नाम धरि रहते शरमाये हैं। "शिव" अजहूं सीखमानि शाति में ऐक्य आनि,
वीर सुधीर बनि जग में जस पाये हैं ॥ १२ ॥
॥ श्री ॥
॥ श्री ॥
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