Book Title: Mahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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( १९१) को सरे उपाय से रंगना पड़ेगा । आर के साफ पानी को एक दूसरे मिट्टी के बर्तन में निकाल कर कपड़े को पानी में भिगो कर उसे अच्छी तरह निचोक डाले । निचोड़ने से कपड़े के चारों भोर से हवा निकल जावेगी और कपड़े पर सब जगह अच्छा रंग चढ़ेगा।
अब कपड़े को दो मिनट नील के पानी के भीतर रंग कर निचोड़ डाले फिर कपड़े को सुखाने से धीरे-धीरे नीला रंग चमकेगा । कपड़े को फिर रंग में भिगो कर सुखा लेने से और गाढा रंग चढ़ेगा । यह हरा नील का पानी का लगने से थोड़ी देर में सब नील हो जायगा, अतः इस पानी को अब नील के घड़े में फिर डाल दें और लकड़ी से अच्छी तरह हिला कर घड़े का मुंह बन्द करके रख देना चाहिये । दूसरे दिन यह नील का पानी फिर काम में लाया जा सकता है। एक बात यहां पर कहना बहुत ही भावश्यक है कि इस हरे रंग के पानी में नील घुली हुई अवस्था में रहता है और हवा लगने से भोपजनके द्वारा धीरे-धीरे नीला पड़ जाता है । यह नील पनघुल होने के कारण एमके भीवर नहीं जाता और इसलिये यह कपड़े पर नहीं चढ़ता । यह हरा रंग सूत के भीतर घुस जाता है और सूखने पर हवा लगने से नीला पड़ जाता है तथा भनघुल होने के कारण कपड़े को अब धोने से रंग साफ नहीं हो सकताः। कपड़े को नील के हरे रङ्ग के पानी में छोड़ कर उसको उलटने से हवा लगने के कारण यह हरा रङ्ग देखते-देखते नीला पड़ जाता है । इस नीले रङ्ग को घड़े में चूने और हीराकष के साथ रख देने से यह फिर घुल जाता है। यदि खून हल्का नीला रङ्ग कपड़े पर चढ़ाना हो तो नमूने के लिये एक कपड़े के टुकड़े को रज कर देखें और आवश्यकतानुसार इसमें गरम जल मिला लेना चाहिये । रङ्ग को हल्का करने के लिये गरम पानी काम में लावें । क्योंकि ठंडे पानी में हवा घुली हुई रहने के कारण हरा रङ्ग भनघुल होकर कुछ नीला पड़ जाता है।
पूर्वोक नियम के अनुसार कपड़े पर दो बार रङ्ग चढ़ाने से कपड़े पर फिरोजी या प्रासमानी रङ्ग भावेगा । बीन या चार बार रणने से गाढ़ा नीला
और कई बार रङ्गने से कपड़े पर काला नीला र भावेगा । प्रत्येक वार माने के बाद कपड़े को हम्रा में पांच मिनट मुखा कर फिर उसे रक्षा मा सकता है।