Book Title: Mahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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अलबत्ता बच्चे के नकाम अथवा जोखम भरे हुए कामों को कोई शिक्षक न पोषे उसको दबा दे अथवा उसका नाश करें। परन्तु इस विषय में शिक्षक को तालीम लेना चाहिये । योग्य अथवा अयोग्यता का निर्णय करने का सूक्ष्म विवेक सीखना चाहिये ।
स्वाधीनता का सच्चा मार्ग बताने के लिये बच्चे के लिये खराब क्या ? और अच्छा क्या ? उसका खयाल देना चाहिये । पुराने आदर्शों के अनुसार हिलेचले बिना बैठ रहने का नाम ही सज्जनता, भलाई यानी अच्छा और क्रिया करना इसका नाम खराब । शिक्षा फैलाने वाले का कर्तव्य यह है कि उसको बच्चे के मन पर रटाना या बिठाने को अच्छा नहीं कहते हैं काम करने के लिये समतोलता प्राप्त करने का नाम संयमन । कुछ न करते अक्रिय सेना, बैठे ही रहना अथवा सिर्फ कहने माफिक ही करना इसका नाम संयमन नहीं है। . . जिस कमरे में सब बालक कुछ न कुछ उपयोगी काम करने के लिये बुद्धि और इच्छा पूर्वक हीलचाल करते रहते हैं और किसी भी तरह का असभ्य बंगली अथवा खराब वर्तन नहीं करते हैं उस कमरे को स्वतंत्र और व्यवस्थित समझना चाहिये। ". दूसरी शालाओं के माफिक बच्चों को एक हार में बैठाने का प्रत्येक की जगह निश्चित करने का और सारे वर्ग को हो सके उतनी शान्ति से बैठने की प्राशा आगे चल कर हो सकेगी । जीवन के बहुत प्रसंगों पर हमे शान्त रहना पड़ता है जैसे कि सभा में अथवा जलसे में और हम जानते हैं कि हमारे जैसे बड़ों को भी व्यक्तित्व इच्छाओं का बहुत भोग देना पड़ता हैं । जब व्यक्ति गत संयम उत्पन्न हो सके तब ही ये हो सकता है। बच्चों को व्यवस्थित और प्रकार उनकी जगह पर बैठाना । ऐसा करके उनके मन में ऐसा खयाल रखने का प्रयत्न करने का है कि इस तरह बैठने से वे सुन्दर दिखते हैं इस तरह क्यवस्थित बैठना अथवा व्यवस्थित करना यह अच्छी रीति है और इस तरह की व्यवस्था कमरे की शोभा को बढ़ाती है। इस तरह से तरह २ के दिशा पुचक पाठ देने से व्यवस्था साधी जा सकती है । हुक्म करने से साधी नहीं जा सकती है । बच्चों के पास यह काम जोर जुल्म से कराने में फायदा नहीं है