Book Title: Mahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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( ८६ ) चारित्र में पीछे मालूम होंगे, बहुत से बुद्धिशाली मालूम होंगे । बुद्धिशाली बच्चे एकदम परिस्थिति के अनुकूल होने की शक्तिवाले होंगे, अपनी पसंदगी नापसंदगी बताने में समर्थ होंगे, अपनी स्वयंस्फूरित एकाग्रता की शक्ति और रुक बताने को शक्तिमान होंगे और अपनी शक्ति मर्यादा भी बतायेंगे । ... प्राणी और वनस्पति शास्त्र में प्राणी और वनस्पति के अवलोकन से समझ में आवेगा कि विषय में स्वतंत्रता का जो अर्थ किया जाता है वही अर्थ बच्चे की स्वतंत्रता के विषय में करने में नहीं पाता है । बच्चा जन्म से ही अमुक तौर पर पराधीन पैदा होता है और सामाजिक व्यक्ति के तौर पर उसमें अमुक गुण होते हैं अतएव वह बंधनों से गिरा हुआ है ये बंधन उसकी क्रिया को मर्यादित करता है।
स्वाधीनता पर रची हुई शिक्षा पद्धति का काम यह है कि बच्चे को स्वतंत्र होने की शिक्षा देने के लिये आगे आना है। स्वतंत्र परिस्थिति में धीरे २ बच्चा ज्यों २ आगे बढ़ता जाता है त्यों २ वह अपने आपको अधिक और अधिक व्यक्त करता जाता है। वह अपना मूलस्वभाव अधिक निर्मलता से बाहिर लायेगा। इन सब कारणों की वजह से शिक्षा में प्राथमिक ही बालक को स्वाधीनता के मार्ग में ले जाने का है। एक दफा स्वतंत्रता का सिद्धान्त स्वीकार किया अर्थात् शिक्षा और इनाम अपने आप ठीक हो जाते हैं । स्वतंत्रता के परिणाम से संयमी मनुष्य सदा ऐसे सच्चे इनामों की स्पृहा करता है कि जो उसको कमी हलका नहीं पड़ने देगा अथवा निराश नहाँ होने देगा इस विषय में डा० मोन्टेसोरी अपने अनुभव के दृष्टान्त देती है। वह जिखती हैकि एक दफा वह एक शाला को देखने गई जिसका इन्तजाम उसके ही सुपुर्द था। वहां शिक्षक ने उसकी पद्धति के बजाय दूसरी युक्तियें दाखिल की थीं।
..एक बुद्धिशाली बच्चे के गले में चांदी के तार से बंधा हुआ एक क्रॉस देखा। दूसरा बच्चा इरादापूर्वक कमर के बीच में रखी हुई पाराम कुर्सी पर बैठा था । पहिले बच्चे को इनाम दिया गया था तब दूसरा बच्चा शिक्षा सहन कर रहा था। जब शिक्षक ने डा. मोन्टेसोरी को देखा तव शिक्षक कुछ नहीं कर सका और स्थिति वहां पर जैसी थी वैसी की वैसी कायन रही । उसको यह देखना ठीक जचा। जिसके गले में क्रॉस लटक रहा था वह प्रवृत्ति में रुका