Book Title: Mahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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(५०) करता है इसलिये शिक्षा का प्रबन्ध ऐसा होना चाहिये कि जिसके परिणाम स्वरूप मनुष्य अपना स्वाभाविक विकास कर सके और जीवन के मुश्किल संयोगों में सिर्फ स्वयंवृत्ति के अनुसार जीवन कार्य करें"।
रूसो ने शिक्षा के पुराने कीलों को अपने स्वातंत्र विचारों से हिला दिये । उसके विचार अस्पष्ट होने पर भी प्रबल नदी की तरह बहते रहे और इससे पुरानी सढिएं टूट गई और उसने स्वतंत्रता की इमारत निर्माण करने के लिये भूमिका तैयार की।
ज्यों मोन्टीसोरी के स्वतंत्रता का भूतकाल रूसो में देखते हैं त्यों मोन्टीसोरी पद्धति की इन्द्रिय शिक्षा की झांखी भी हमको रूसो के विचार में होती है। रूसो कहता है " बाहिर जगत का ज्ञान मनुष्य इन्द्रियों द्वारा करता है इसलिये मनुष्य को स्वयम् बाहिर जगत् के सम्बन्ध में यथार्थ रूप में लाने को अथवा उसका पूरे पूरा लाभ उठाने को इन्द्रियों की शिक्षा हासिल करनी चाहिये । इन्द्रियों के अनुभव में से बुद्धि का प्रदेश खुलता है। ज्ञान के मुख्य हाथ पैर हमारी इन्द्रीय ही हैं। विचार करने सीखने के लिये मनुष्य को अपनी इन्द्रियों को काम में लाना सीखना चाहिये। यहां पर रूसो इन्द्रियों की शिक्षा का महत्व बताता है उस वक्त की किताबी शिक्षा को गिरा देता है और खेलों द्वारा इन्द्रिय शिक्षा देने की हिमायत करता है। रूसो इन्द्रियों को सिर्फ काम में लाने से ही मात्र इन्द्री विकास का होना नहीं मानता है । वह कहता है "इन्द्रियों का विकास अर्थात् इन्द्रियों के साधन से इन्द्रिय गम्य विषयों को यथार्थ तौर पर बोलने की शक्ति । मसलन एक मनुष्य को यह निर्णय करने का है कि कितना बड़ा लकड़ा रखने से झरने को पार करने में वह पुल रूप में काम दे सकेगा। जो मनुष्य आंख से बराबर अंदाजा कर सकता है और यह बता सकता है कि इतने बड़े जकड़े की जरूरत है। इस पर से यह साफ जाहिर है कि मनुष्य की प्रांख शिक्षित है। तरह २ के खेलों में जैसे कि टेनिस तीरंदाजी आदि में इस तरह की शिक्षा दी जा सकती है। जैसे की दो वृक्षों के बीच में झूला बांधने का है तो विद्यार्थियों को पूछना चाहिये कि कितनी रस्सी की जरूरत होगी ? रूसो का मत है कि इन्द्री तीव्रता से अनुभव करती है उसमें उसकी शिक्षा पूरी नहीं होती है परन्तु उसको इस तरह के परिणामों की यथार्थता का खयाल हो