Book Title: Mahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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(a ) सामान्यतः मूढ़ बच्चों की स्पर्शेन्द्रिय बहुत ही जड मालूम होती है या तो उसके स्पर्श से वस्तु का कुछ भी खयाल नहीं आता है अथवा तो स्पर्श की इन्द्री इतनी अधिक तीव्र होती है कि किसी भी वस्तु को स्पर्श से जानना मुंह बालकों के लिये अत्यन्त कठिन कार्य है कारण कि बच्चा उसको स्पर्श नहीं कर सकता है इस तरह की कमी के बहुत से कारण हैं।
इन कारणों को दूर करने के लिये भिन्न २ तरह की कसरतों की योजना की गई है जिनकी स्पर्शेन्द्रिय अत्यन्त कोमल होती है उनको ईट्टै उठाने का, पावड़ा गेंती से खोदने का, अथवा करवत से वैरने आदि का मोटा काम दिया जाता है और जिनकी स्पर्शेन्द्रिय अत्यन्त जड़ होती है उनको मुलायम और पोलिश किये हुये पदार्थों को स्पर्श करने को कहा जाता है। बराबर स्पर्श करने के लिये एक के बाद दूसरा ठंडे और गरम पानी में हाथ भिगोने की कसरत भी सेगुइन ने रक्खी है।
खाद और गंध की इन्द्री करीब स्पर्श की इन्द्रियों से मिलती आती हैं। सेगुइन उनकी खास शिक्षा का प्रबन्ध नहीं करता है वह भी यह बात मानता है कि बिलकुल अलग रखना भी तो भूल भरा हुआ है । मूढ़ बालकों को मैना क्या और स्वच्छ क्या ? सुगन्ध क्या और दुर्गन्ध क्या ? इसकी खबर पड़नी ही चाहिये, इसलिये बच्चों को स्वस्था के वातावरण में रखने चाहिये और साफ हवा का परिचय कराना चाहिये। ऐसा करने से उनके अन्दर संस्कारिता मायगी और वे शहरों की दुर्गन्धी की खराबियों से बच जायेंगे ।
कर्णेन्द्रिय के विषय में सेगुइन मानता है कि मृढ बालक सुनते नहीं हैं उसकी कोई खास की खराबी नहीं है परन्तु अन्दर ही कुछ न्यूनता है अतएव तर २ के आवाजों से तथा संगीत तथा वाणी से इस कमी को दूर करने के लिये उसके प्रयोग थे। उसका अनुभव ऐसा था कि खाली बालक पिस्तोल की आवाज मी नहीं सुन सकता था उसकी यह मान्यता थी कि यदि बच्चे को प्यास लगी हो और एक प्याला में से पानी दूसरे में डाला जाय तो उसका आवाज वह सुन सकता था। जीवन के भावश्यक प्रसङ्ग खड़े करने से उसके सम्बन्धी आवाज बह बालक सुन सकते हैं। भावानों से सङ्गीत की प्रसर. अच्छी होती थी।