Book Title: Mahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
View full book text
________________
( ३४ )
प्रथम जीवन का साधन मात्र माता का दूध स्तनपान था। अब जीवन के साधनों की कमी नहीं है । इन साधन विपुलता का लाभ माता से स्वतंत्र होने के बाद बच्चे ले सकते हैं ।
1
बच्चे की यह एक तरह की स्वाधीनता हुई। यह स्वाधीनता महत्व पूर्ण गिनी जाती है और छोटी उम्र में बच्चा पूर्ण स्वाधीन होता है। बच्चे को जब तक अपने आप चलते अपना मुंह स्वयं धोते, अपने कपड़े खुद पहिनते, और खुद को जिस २ वस्तु की जरूरत है व २ वस्तुएं समझो जा सके ऐसी शुद्ध स्पष्ट वाणी में जब तक नहीं मांगी जा सके तब तक वह परवश पराधीन है। बच्चों को तीन वर्ष की उम्र में स्वाश्रयी और स्वतंत्र हो जाना चाहिए ।
स्वाधीनता का सच्चा अर्थ-उसका रहस्य- इसका सच्चा ख्याल अभी हम नहीं आया उसका कारण यह है कि हमारा सामाजिक जीवन वातावरण श्रभी तक इतना अधिक गुलामी भरा हुआ है कि प्रत्येक फल में हम गुलामी का श्वास श्वास लेते हैं। जिस युग में सेवक संस्था विद्यमान है उस युग में स्वाधीन जीवन की कल्पना होना बड़ा मुश्किल है फिर उसके बीजारोपण के विचार की बात ही कहां रही ? गुलामी के दिनों में भी स्वतंत्रता का सच्चा धर्म तो विकृत और अन्धकार में ही था ।
-
हमें यह याद रखना चाहिए कि यदि निःसन्देह देखा जाय तो हमारे नौकर ही हमारे आश्रित नहीं है परन्तु हम स्वयम् ही उनके आश्रित है। हमारी आज की नैतिक दशा अधम हो गई है यह स्वीकार किये बिना हम कभी भी हमारे सामाजिक बन्धारण को हमारी गम्भीर भून कभी मंजूर नहीं करेंगे। हमारे ऊपर कोई आज्ञा नहीं करता है और हम दूसरे पर भाज्ञा करते हैं इससे अक्सर हम मान बैठते हैं कि हम स्वाधीन हैं। परन्तु जो अमीर मनुष्य अपने काम में नौकर की मदद मांगता है वह स्वयं काम करने की अशक्ति की वजह से नौकर के आधीन रहता है । लकवा से ग्रसित एक मनुष्य रोग से उत्पन्न परवशता की वजह से अपने जूते नहीं उतार सकता है और एक राजकुमार यह समझता है कि मैं उच्चकुल का हूं अतएव यदि अपने ही जूने उतारूंगा तो समाज ऐसा कर ने को खराब कड़ेगा इस नीति से वह जूते हाथ से उतारने की हिम्मत नहीं