Book Title: Mahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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( ७० ) की आज्ञा तो बच्चा मानता ही है परन्तु कोई मनुष्य बच्चों को किसी तरह का काम सौंपता है तो वे उसको भी जरा बारीकी से, होशियारी से, हालत सुनकर आर्यजनक कार्य करते हैं। बच्चों को कभी २ प्रेक्षक चित्र निकालते हुए संगीत गवाते हैं । बच्चा अतिथि सत्कार के लिए एक गायन गाता है और पुनः वह काम पर लग जाता है उसके काम में कोई कमी नहीं है। मुख्यतः छोटे बच्चे आज्ञा होने के पहिले ही काम कर लेते हैं ।
यदि बच्चा निर्भय न हो तथा स्वतंत्र और सुखी न हो तो वह अपना कार्य दूसरे को अन्तःकरणपूर्वक नहीं बता सकता। यदि वे प्रेमपूर्वक प्रेक्षकों को सब कुछ नहीं समझाते होते तो अवश्य किसी को यह बात मालूम नहीं होती । अतएव इस पर से जो सुन्दर नियमन दिखता है वह दबाव का परिणाम नहीं है कारण कि यहां पर तो यह साफ २ दिखता है कि छोटे २ बच्चे स्वयं मालिक है । यदि बच्चे जिस प्रेमोत्साह से अपने हाथ शिक्षक के पैर पर बिटौल कर शिक्षक को नीचे से नमन करने को बाध्य किये जाते हैं और चुम्बन करते हैं। इससे साफ जाहिर है कि छोटे बच्चों का हृदय यथेच्छ विकाश के लिए कितना स्वतंत्र है ।
जिन्होंने उनको भोजन की तय्यारी करते देखे होंगे उनको बहुत • अचम्भा हुआ होगा कि छोटे चार वर्ष के बालक छुरी, कांटे और चमच लेते हैं। पानी मरेहुए कांच के प्याले रकाबी में रखकर रकाबी को ले जाते हैं और गरम श्रोसामन के बरतन में से एक भी बून्द गिराये बिना एक टेबल से दूसरे टेबल पर ले जाते हैं और ऐसा करने में एक भी गलती नहीं होती है, एक भी प्याला नहीं टूटता है प्रोसामन का एक भी कतरा नीचे नहीं गिरता है। छोटे पिरसने वाले बच्चे भोजन के समय होशियारी से कार्य करते हैं । प्रोसामन खत्म हो जाता है तब दूसरा उसी वक्त हाजिर करते हैं ।
चार वर्ष का बच्चा जो साधारण झगड़े करता है जो हाथ में लेता है। उनको तोड़ फोड़ देता है उसको यहां पर सब कुछ करना पड़ता है । उसको इस तरह से काम करता देख हर कोई मनुष्य हृदय से प्रफुल्लित हो जाता है उनका परिणाम मनुष्य की आत्मा की गहराई में रही हुई गुप्त शक्ति के विकास में से आता है। अक्सर प्रेक्षक बच्चों को मजलिस में रोते देखते हैं ।