Book Title: Mahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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(६०) मृढ़ बच्चे संगीत को नहीं समझते हैं तो भी उन पर पहिले कभी कोई हृदय को हिलाने वाली असर नहीं हुई है वह संगीत से अवश्य होती थी। उसका अनुभव ऐसा था कि संगीत से भ्रम दूर होता है। सङ्गीत मन्द बुद्धि वाले बच्चे में चेतन्यता प्रगट करता है, विचार को जागृत और त्वरित करता है, और क्रोध थकावट तथा शोक को दूर कर कोमलता अर्पण करता है। संगीत नैतिक जीवन का पोषण है चाहे बालक शुरू ही शुरू में संगीत की मोर कान से ध्यान न दे और वह अरसिक लगे परन्तु धीरे २ उसमें संगीत प्रियता की कुछ अंश में जागृति होगी। जब वाद्य बजे तब बालक के हाथ अथवा छाती को वाद्य के साथ लगा देना चाहिये बनानेवाले को कभी ऊँचे स्वर से कभी नीचे स्वर और बीच में कुछ ठहर कर बजाना चाहिये इससे आवाज की समविषयता की वजह से बालक संगीत की कदर करना सीखेगा और कभी २ बच्चों को एकान्त और अन्धेरे में रखना जरूरी है आस पास का वातावरण शान्त किये बाद दूर २ के आवाज अथवा संगीत उसको सुनाना चाहिये । ऐसा करने से आगे पीछे मन्द कान में स्वर प्रवेश कर सकेगा। एक दफा कान सुनेगा तो धीरे २ वह सुनने लगेगा। ऐसा करने से बच्चा संगीत प्रिय हो जायगा इन सब बातों का डाक्टर मोन्टीसोरी ने सुन्दर प्रयोग किया है।
आँख की शिक्षा के बारे में सेगुइन के विचार मोन्टीसोरी पद्धति की दृष्टि में खास देखने लायक है। आँख की शिक्षा में प्रथम प्रश्न आँख की स्थिरता का है। मृढ़ बच्चों में आंख की चंचलता बहुत होती है। सेगुइन ने इसके लिये नीचे लिखी कसरतों की योजना की है:
१-बच्चे जो चीजें ढूंढ़ सकते हैं उन्हें ढूंढ़ाओ ।
२-बच्चों को अन्धेरे में रख कर वहां प्रकाश से भौमितिक अथवा दूसरी श्राकृतियों की रचना करो और उनको उनकी दृष्टि के आगे रखो । __ ३-केलीडोस्पीक के रंग और रंग की घटनाओं को बताओ ।
४-बालक के हाथ और आंख स्थिर करने के लिये उसको आसन (चिोड़ा) पर बिठलामो ।