Book Title: Mahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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सकता है और उसी में उसकी शिक्षा का समावेश हैं। मोन्टीसोरी के इन्द्रिय शिक्षा में जो संस्कारिता अथवा सूक्ष्मता का विचार है वह रूमो में अस्पष्ट है। इन्द्रिय शिक्षा के साधन पर रूसो की पद्धति शास्त्रीय नहीं कही जा सकती।
इन्द्रिय शिक्षा में मोन्टीसोरी पद्धति का एकाकीकरण का सिद्धान्त रूसो में दिखता है परन्तु उसकी दृष्टि इस विषय में निर्मल नहीं है।
इटार्ड मोण्टीसोरी के सच्चे पूर्वाचार्य इटार्ड और सेगुइन ही हैं। जो ज्ञान मंदमंति के बच्चों को शिक्षा से दिया जा सके वह समधारण बुद्धि के बच्चों को स्वयम शिक्षण से दिया जा सकता है ये विचार इटाई और सेगुडन के प्रयत्नों के आभारी है । इटाई और सेगुइन पैदा न हुए होते वो यह पद्धति इतनी जल्दी जन्म नहीं पा सकती थी। मोन्टीसोरी पद्धति समधारण बुद्धिवाले बच्चों के लिये है परन्तु उसका आधार मूढ मंदमति के बालकों को देने की शिक्षा की फीलोसोफी पर है। इटाई ने सन् १७७५ ई० में ओरेइसन नामक गांव में जन्म लिया था उसका विचार कोई व्यवसाय करने का था परन्तु फ्रेन्च विप्लव की वजह से उसकी यह आशा बदल गई। लड़ाई में लश्करी दवाखानों में वह भासिस्टेन्ट सर्जन की जगह पर काम करता था। यहां ही उसको अपनी जीवन प्रवृत्ति हाथ लगी। - उसने २१ वर्ष की उम्र में पेरीस के बहिरों गूगों की पाठशाला के वैद्य का काम शुरू किया। यहां उसको एक ११, १२ वर्ष का लड़का मिल गया यह लड़का मनुष्य के सहवास बिना अब तक जंगल में फिरता था उसकी आदतें मनुष्य को थकाने वाली थी। पिंजरे में डाले हुवे पशु की तरह वह अपने शरीर को जरा भी स्थिर नहीं रख सकता था और ऊंचे नीचे किया करता था। उसकी सम्भाल रखने वाले पर भी वह प्रेम दृष्टि नहीं रखता था। उसके पास पास जो कुछ बनार बनते थे उससे वह सदा बेखबर रहता था। उसकी इन्द्रियों की शक्ति पाले हुए जानवर से भी उतरते दर्जे की थी उसकी आँखे चकल वाल