Book Title: Mahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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( ५३ ) ४-उसको अनुकरण करने के फर्ज बता कर वाणी का उपयोग करते सिखाना।
__५-थोड़े समय तक स्थूल हालतो पर मन के विकास को साधना और उसके द्वारा शिक्षा के विषय में उस विकास को काम में लाना ।
इटार्ड ने उसको जंगली स्थिति में से सामाजिक जीवन में लाने के लिये पहिले पहल उसके लिये जंगली तौर पर कार्य करने की व्यवस्था कर दी। यहां तक कि जब यह मूर्ख पेरीस की गलियों में दौरता था तब उसके पीछे इटार्ड भी दौड़ता था लेकिन उसको बांध कर नहीं रखता। फिर भी इटार्ड को अनुभव से पिनेल के कथन के सत्य की खातरी हो गई। इटार्ड इन्द्रियों के शिक्षा के विषय में आँख में और कान की शिक्षा में कुछ कर सका। जंगली लड़के को गोल और चौरस पदार्थ पहिचान में आगये। वह दृष्टि से लाल और भूरे रंग का भेद देख सकता था। वह स्वाद से खटाई का भेद जान सकता था। वह कान के विषय में फल अथवा कोई खाद्य पदार्थ गिरने का आवाज जान सकता था तो भी वह पिस्तोल के छूटने का आवाज नहीं सुन सकता था। इटार्ड को जंगली के इन्द्रियों की शिक्षा के विषय में बहुत विजय मिली परन्तु उसकी योजी हुई विचारश्रेणी सेगुइन और मोन्टीसोरी को लाभप्रद हुई। इटार्ड के विचारों से यह प्रतीत होता है कि इन्द्रिय शिक्षा में इन्द्रियगम्य पदार्थों से होने वाले अनुभव में उनके साधर्म्य वैधर्ना की शिक्षा में ही मुख्य शिक्षा है।
इटार्ड जंगली की जरूरतों को बढ़ाने में कामयाब नहीं हुआ। उसको खिलौने तो जरा भी आकर्षित नहीं कर सके । वह खाने के बाद एक ही खेल खेला करता था। यह खेल प्याले के नीचे ढके हुए फल को ढूंढ़ निकालने का था इसमें फल अर्थात् खाने के बजाय दूसरी कोई चीज रखने पर भी खेल होता था। खास करके तो उसमें दूसरे के प्रेम की जरूरत का विकास हुआ था। एक स्त्री जो उसको सम्हाल रखती थी उसके पास वह रहना चाहता था। उसका वियोग उसको दुःखदायक मालूम होता था और उससे मिलने पर वह सुख का अनुभव करता था। वह इटार्ड को भी चाहता था जो कि यह चाहना उसकी अप्रगट थी तो भी वह बहुत तीन थी।