Book Title: Mahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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( ब) पेरेरा ने यह ढूंढ निकाला है कि वाणी दो तरह से गम्य है। एक ध्वनि से और दूसरी भान्दोलन से । पहिली रीति मात्र कर्णगम्य है जब की दूसरी आन्दोलनक्षम त्वचागम्य है। उसकी कल्पना ऐसी थी कि साधारणतः मनुष्य आन्दोलन का अनुभव नहीं करते हैं और ध्वनि द्वारा वाणी सुनते हैं। परन्तु बधिर जो कि ध्वनि द्वारा सुनता ही नहीं वह-भान्दोलन का ही अनुभव ले सकता है इसलिये यदि अमुक निश्चित धनि के साथ उठते निश्चित आन्दोलन का अनुभव बहरां को कराया जाय तो इसका परिणाम आन्दोलन का अनुभव होते ही इसके साथ उठते हुये ध्वनि का बहिरे उच्चारण करेंगे। इस तरह ध्वनि में से आन्दोलन पर आन्दोलन में से वे धनि क्रिया समझेगे और वे भाषा बोलना सीखेगे। इस तरह उसने विद्यार्थी को त्वरा से सुनते और इस श्रवण को बराबर सुनने माफिक उच्चारण करते तथा उद्गार निकालते सीखाया। इस तरह उसने गुंगो को बोलना सीखाया। इस पेरेरा ने उस वक्त के विज्ञान शास्त्रों को यह सिद्ध कर बताया कि स्पर्शेन्द्रिय के भिन्न २ स्वरूप मात्र हैं । स्पेर्शेन्द्रिय की महिमा हेलन कॅलर की शिक्षिका सुलिवन एक लेख में इस माफिक वर्णन करती है " स्पर्शेन्द्रिय जो महेन्द्रिय है उसकी शिक्षा पर पूर्ण भार नहीं दिया गया है। समग्र त्वचा देखती है और सुनती है एकली त्वचा नहीं परन्तु सब हड्डी स्नायु और सारा शरीर यह कार्य कर रहा है। मानसशास्त्र और मानसवंशशास्त्र कहता है कि श्रवणेन्द्रिय और चक्षुइन्द्रिय मात्र स्पर्शेन्द्रिय के विशेष नाम और रूप हैं। स्पर्शेन्द्रिय इन्द्रियों की माता है इसने अपनी विविध शक्तियों की वसीयत अपनी प्रत्रियों को दी है। अंधे और बहिरों का उद्धार इस मातशक्ति के विकास पर अवलम्बित है।
सारांश कि स्पर्शेन्द्रिय का विकास अन्धे और बहरों को सूर्य, सागर और तारागण के दर्शन कराता है।
पेरेरा के काम में से निम्न लिखित बातें मिलती है:
(१) समग्र इन्द्री तथा प्रत्येक विशिष्ठ इन्द्री की शिक्षा और विकासक्षम है और विकास के परिणाम स्वरूप इसकी शक्ति अनेक गुनी और अनन्त हो सकती है।