Book Title: Mahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan

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Page 48
________________ (४६) डाक्टर के तौर पर देखता है। शिक्षक और डाक्टर का सुयोग लॉक में है और खास कर इसमें डाक्टर मोन्टीसोरी का पूर्वाचार्यपन स्पष्ट है । यह हम लोगों ने देखा है कि मॅडम मोन्टीसोरी उत्तम वैद्य और मानसशास्त्री है। लॉक इन्द्रिय शिक्षा के विचार को भी स्पर्श करता है । परन्तु ये विचार स्पष्ट नहीं हैं। इन्द्रिय की निरोगी स्थिति करने में ही लॉक इन्द्रिय शिक्षा समाप्त करता मालूम होता है । उसका यह खयाल है कि यदि निरोगी इन्द्रिय को स्वाभाविक व्यापार करने का अवकाश मिलें तो वह व्यापार ही शिक्षा रूप है । इन्द्रिय शिक्षा के विषय इतना भी पूर्वाचार्य के इतिहास से प्रगट होता है । कॉन्डीलॅक जॉन लॉक के बाद कॉन्ड्रीलॅक का जन्म १७१५ से १७८० में हुआ कॉन्ड्रीक एक खानदानी फ्रेन्च कुटुम्ब का मनुष्य था। लॉक के विचारों की असर जिनके ऊपर होती थी उन में कॉन्डीलॉक मुख्य था । उनके विचारों में यह विशेषता थी कि सब शक्तियों में मुख्य शक्ति संवेदना शक्ति है अर्थात् इन्द्रिय द्वारा होने वाले बाहिर जगत के अनुभवों को ग्रहण करने की शक्ति है। उसने "विश्व के सम्पर्क में आते इन्द्रियों से होने वाले अनुभव" नामक पुस्तक लिखी है । यद्यपि कॉन्डी इन्द्रियों के अनुभव को मानसिक व्यापार के पाया रूप गिनते हैं परन्तु उसकी दृष्टि के आगे इन्द्रिय शिक्षा का आज जो अर्थ है वह मालूम नहीं होता है | परन्तु इससे उलटा उसका कहना यह था कि इन्द्रियों को खास शिक्षा देने की जरूरत नहीं है । यदि छोटी उम्र में बारम्बार इन्द्रियों से बुद्धिपूर्वक कार्य लिया जाय तो इन्द्रियों का विकाश स्वाभाविक हो जाता है । उसका मत इन्द्रियों को स्वतंत्र रूप से शिक्षित करने के बजाय अव लोकन शक्ति और तुलना बुद्धि से शिक्षित करने का था । यद्यपि कॉन्डीलॅक ने साफ तौर से इन्द्रियों को शिक्षित करने का नहीं लिखा है तो भी उसने यह प्रतिपादन किया है कि बौद्धिक शिक्षा में इन्द्रिय शिक्षा का ही आवश्कीय स्थान है और ये ही विचार उत्तरोत्तर रूसों ने कॉन्डीलॅक के विचारों से ग्रहण किये ।

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