Book Title: Mahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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( २३ )
रत्नत्रय का अधिकार नहीं है ? क्या वह परम पद की अधिकारिणी नहीं है ? क्या पुरुषार्थ के कार्य पुरुषों के सदृष्य स्त्रियोंने नहीं कर बताये ? फिर क्या पुरुष ही महत्व के दर्जे हो सके और स्त्री न हो सके यह बड़ी ताज्जुब की बात है । पुरुषों ने ग्रन्थ लिखे, पुरुष ही शासन करते प्राये इस लिये पुरुष महात्म्य कायम रहा और स्त्री-महात्म्य पर परदा पड़ गया । परन्तु इसका उल्टा नतीजा यह आया कि सारे देश पर आवरण छा गया और धर्मदीपक फीका पड़ गया युग धर्म का समय इस परदे को उलट करने की पुकार कर रहा है। श्राज बीसवी शताब्दि का जमाना है कि इस परदे में भुजाई हुई आत्म शक्तियों को विकास में लाने का प्रयत्न करो ।
हमको यह बात नहीं भूलना चाहिये कि त्रे महात्म्य का दिवाला निकलने के साथ ही महात्माओं की पैदायश पर ढक्कन भा जाता है । निःसन्देह महात्माओं की पैदायश महात्मनियों से ही होती है कारण कि गुणों के अंग से प्रकट महात्म्य स्त्री और पुरुष के भेद को नहीं गिना जाता है। स्त्री जाति के सम्बन्ध में कम ख्याल रखने वाले को सम्बोधन देकर आचार्य भगवान हेमचन्द्र योगशास्त्र के तीसरे प्रकाश के १२० श्लोक की व्रति में जो कहते हैं उसका अक्षरशः अनुवाद किया जाता है ।
" स्त्रियों में सुशील माव तथा रत्नत्रय का योग कैसे हो सकता है ? कारण कि स्त्रिये लोक में अथवा लोकोत्तर में तथा अनुभव से भी दोष पात्र के तौर पर प्रसिद्ध है । स्त्री एक तरह विष- कन्दली है, वज्रक्षनी है, व्याधि है, मृत्यु है, सिंहनी है, और प्रत्यक्ष राक्षसी है, झूठ, माया, कलह, झगड़ा, दुःखसन्ताप आदि का बड़ा कारण है उसमें विवेक तो विलकुल होता ही नहीं हैं इसलिये उसका त्याग दूर से करना चाहिये । दान, सन्मान, वात्सल्य उसके लिये करना योग्य नहीं हैं ? जवाब- दोष अक्सर स्त्रियों में देखे जाते हैं त्यों पुरुष भी क्या वैसे नहीं होते हैं ? पुरुष भी नास्तिक, धूर्त, घातकी, व्यभिचारी, नीच, पापी, तथा
धर्मी होते हैं तो भी पुरुष जाति खराब नहीं कही जाती, त्यों नारी जाति को भी खराब नहीं कहना चाहिये । सत् पुरुषों के सदृष्य सतियों की भी यश प्रशस्तियों मशहूर है । विद्वान लोग युवती के गौरव की इसलिये प्रशंसा करते हैं कि वह ऐसे कोई गर्भ को धारण करती है कि जो सम्पूर्ण जगत का श्रद्धेय गुरु बनता है। स्त्रियों ने अपने शील के प्रभाव से अनलादि कठिन उपद्रवों को विपरीत रूप में उतारने