Book Title: Mahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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चीन में स्त्री यान्दोलन
चीन में स्त्रियों ने आश्चर्य जनक रीति से उन्नति पथ पर कदम बढ़ाये हैं २५ वर्ष पूर्व चीन की "सुन्दरियें" यह भी नहीं जानती थीं कि " घर से बाहर " भी कोई दुनिया है ! सड़कों पर उनके दर्शन होना, एक घटना समझी जाती थी ! कभी कभी मजदूर स्त्री बाजार में जाती अवश्य दीख पड़ती थी ! परन्तु अब ? व तो दृष्टिकोण ही परिवर्तित हो गया है ! - वे तो श्राज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में दर्शन देने लगी है !- वे ट्राम में बैठती हैं, सड़कों में सखीसहेलियों के साथ मुसकुराती फिरती हैं, सिनेमा घरों को भी अलंकृत करने लगी हैं। यहां तक कि अपनी मोटर गाड़ियों को चलाने के लिये भी आगे बैठी हुई दीख पड़ती हैं।
चीन में भारत की भांति "पर्दा " का प्रचार कभी नहीं हुआ। दूसरी शताब्दि में श्रीमती पानचौ प्रसिद्ध इतिहास लेखिका हो गई है। इतना ही नहीं यह देवी चीन की प्रसिद्ध कवयित्री भी हो गई है । १६ वर्ष के जीवन से इसने वैधव्य-जीवन व्यतीत किया था। शायद इसी वजह से इसके अन्तर प्रदेश में वेदना ने काव्य का रूप धारण कर लिया था ! परन्तु प्राचीन काल में कुछ अपवादों को छोड़ कर लड़कियों को “शिक्षा-शिविर" में प्रविष्ट होने का बहुत कम अवसर आता था ! शिक्षा का सेहरा पुत्रों के सिर ही बांधा जाता था ! उस जमाने में लड़कियों की शादी उन पुरोहित-पण्डों के द्वारा की जाती थी जो इस धन्धे को ही करते थे शादी होने के पूर्व चीनी कुमारी को अपने पतिदेव के दर्शन प्राप्त नहीं होते थे। चीन में पुरुष, स्त्रियों का तलाक कर सकता है परन्तु स्त्री, अपने पति को तलाक नहीं दे सकती । यहाँ तक, प्रथा थी कि यदि चीनी पत्नी मर जाय तो उसका पति उसकी शव यात्रा में शामिल होने के लिये धार्मिक या सामाजिक दृष्टि से बाध्य भी नहीं समझा जाता था ! यह वर्षों पूर्व की बात है ।
परिवर्तन का प्रादुर्भाव हुआ सन् १६०० से । उस समय से आज तक अनेक लड़कियाँ मिशन-स्कूलों में पढ़ने जाने लगी है। इतना ही नहीं, कुछ, विदेशों में शिक्षा प्राप्त करने को पहुंची हुई है। इस समय इंग्लैण्ड, अमेरिका और फ्रांस