Book Title: Mahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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. (३) हाथ में लिया। वह स्वभाव, शिक्षा और अनुभव से विज्ञानवेत्ता थी अतो उसने शालाओं की स्थिति का अच्छी तरह निरीक्षण किया। शिक्षा शास्त्र की अनेक पुस्तकें देखीं उनमें जो कुछ ग्रहण करने योग्य बातें थीं वे ग्रहण करती गई। लोम्बीसो और सर्गी की पुस्तकें उसको अच्छी मालूम हुई और उनकी उस पर अच्छी छाप पड़ी। उसके विचार घड़ने में वे सहायभूत हुई। चालू शिक्षापद्धति के दोष और अपूर्णता उसको हस्तामलकवत् दृष्टिगोचर हुए। उसकी पीछे से लिखी हुई Advanced Montessori method Vol | के A Survey of Modern Education नामक प्रकरण में उस समय की शालाओं का अक्षर २ वर्णन दिया हुआ है। शिक्षा क्षेत्र में काम करने वाले हर मनुष्य के लिये वह पढ़ने योग्य है। इस प्रवृति में उसने सात वर्ष लगाये इसी समय उसने इटार्ड
और सेगुइन के लेखों का अधिक अभ्यास किया। उन लेखों का मतलब बराबर समझा जाय इसलिये उसने फ्रेन्च भाषा में किया और उनको अच्छी तरह पढ़े और साथ ही साथ उन पर अच्छी तरह विचार किया। अब वह अपने विचारों को अमल में लाने का समय ढूंढती थी और इसी अर्से में उसको एक सुयोग प्राप्त हुआ।
इटली के गरीब लोगों के रहने का प्रश्न बहुत महत्व का हो गया था वे गरीब लोग गंदगी में सड़ते थे वे ऐसे खराब और संकृचित स्थल घरों में रहते थे कि जहां किसी भी तरह की मर्यादा नहीं पाली जा सकती थी। अलावा इसके सहज में ही नीति का भंग हो सकता था और यह कहा जाय तो अतिशयोति नहीं होगी कि इन लोगों के लिये खानगी जीवन का सदैव के लिये नाश हो चुका था । इस दुःख में से इन बेचारे लोगों का दुःख दूर करने का विचार इटली के एक वजनदार, बुद्धिशाली और देशाभिमानी.रोमन साइनोर अंडो श्रेझै टालमीना के मन में आया। यह गृहस्थ रोमन स्थापत्य मंडल का अधिकारी था उसने इस प्रश्न का बारीकी से अभ्यास किया और किस बरह के घरों की रचना करने से मरीब लोग सुख से रह सकते हैं। आदि योजना तैयार की। उसकी योजना सब तरह से सम्पूर्ण और संतोषकारक थी। सिर्फ एक मुश्किली थी। वह मुश्किली यह थी कि जब ये गरीब मा बाप अपनी आजीविका के लिये सारा दिन बाहर व्यतीत करे और उस समय पाठशाला में न जाने वाले छोटे बालक छूट