Book Title: Mahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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उतने सब साधारण बुद्धि के बालकों से अधिक अच्छी तरह उत्तीर्ण हुए। इन परिणामों से लोग प्राचर्यचकित हुए। जिन्होंने इन परिणामों को आँखों से देखे उन्होंने इस किस्से को जादुई किस्सा माना परन्तु डॉ० मोन्टीसोरी तो इस विचार में पड़ी थी कि अच्छी बुद्धि के तन्दुरुस्त और सुखी बालक इन मूह अतन्दुरुस्त और कंगाल बालकों से बुद्धि में कम कैसे हुए और परीक्षा में उनका दर्जा क्यों नीचा गया । इस पर से उसको मालूम हुआ कि इस पद्धति से मूढ बों को इतना अधिक लाभ हुआ तो फिर इस पद्धति से सीखने वाले साधारण बालकों को अवश्य इससे अधिक लाभ होगा और उनकी प्रगति चमत्कारिकं हो जायगी । उसने विचार किया कि जो पद्धति मन्द मति के बालकों के लिये काम में लाई गई थी उसमें ऐसी कोई विशेषता नहीं थी कि जो सिर्फ मन्द बुद्धि के बालकों के उपयोग में ही लाई जाय । यह पद्धति भी शिक्षा के सिद्धान्तों पर रखी हुई थी और उन सिद्धान्तों का भी गरीब बालकों पर भावि - ष्कार किया और इसमें उसको सम्पूर्ण विजय मिली। दूसरे वर्ष दूसरा बालगृह स्थापित किया। इस समय लोगों में डा० मोन्टीसोरी की कीर्ति फैल चुकी थी । दूसरा बालगृह स्थापित करने की क्रिया बड़ी धूम धाम से हुई। इस प्रसङ्ग पर डा० मोन्टीसोरी ने एक सुन्दर और मननीय व्याख्यान दिया था । यह व्याख्यान मोन्टीसोरी पद्धति नामक पुस्तक में प्रारम्भिक व्याख्यान प्रकरण में दिया है।
बिजली के सदृश डॉ० मोन्टीसोरी की ख्याति संसार में फैल गई। अभी तो बालगृह अधूरा था उसके कार्य की विगत अपूर्ण थी, सगवड़ और व्यवस्था पूरी न हुई थी और प्रयोग तो अभी जारी ही थे इतने में तो देश विदेश से शिक्षा के यात्री मोन्टीसोरी शालाओं को देखने को आने लगे। इसी अर्से में उसके Montessori Method नामक पुस्तक का अंग्रेजी में भाषान्तर हुआ और अंग्रेजी जानने वाली प्रजा का लक्ष इस प्रवृत्ति में एका एक बढ़ गया । भाज तो इस पुस्तक का अंग्रेजी, फ्रेन्च, जर्मन, स्पेनीश, रशियन, पॉलीश, रूमानियन डेनीश और जापानी भाषा में भाषान्तर हो चुके हैं। यह पुस्तक शिक्षा के साहित्य में अद्वितीय है । इसकी भाषा बहुत ही असरकारक और प्रोत्साहक है इसको पढ़ते २ अनेक बार आँखों में से ज्ञानन्दाश्रु गिरते हैं। इसमें जाति अनुमन