Book Title: Mahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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( ६ ) से घर में अकेले रहे और विशाल मकानों के दिवारों पर जीनो पर लकीरें करके बिगाड़ दें। छोटे बालक किस २ तरह की मस्ती से मकानों को खराब कर देते हैं उसको सब कोई जानते हैं। टालमोना के मन में यह विचार माया कि इस तरह से मकान खराब करने में भावे और उनको सुधारने के लिये किराये: दारों से पैसे लेने के बनिस्बत उतने ही पैसों के खर्च से बालकों को सारा दिन खेल कूद में रोके जाँय ताकि वे तोफान लड़ाई झगड़ा करने से बच जाय
और यह जब ही हो सकता है कि इनको किसी अच्छे व्यक्ति के सुपुर्द कर दिय जाय अतएव उसने एक लत्ता में चालकों के लिये अलग कमरों की तजवीज की
और वह किसी योग्य दृष्य की शोध में रहा । - टालमोना को डॉ० मान्टोसोरी की प्रवृत्ति की खबर मिल चुकी थी उसने यह निश्चय किया कि मेरे काम में डॉ. मोन्टीसारी उपयोगी होगी अतएव उसने डॉ. मोन्टोसीरी को समझाई उसने डॉ० मोन्टीसोरी से विनंति की कि वह इन बालकों को अपनी देख रेख में रक्खे और उनको उपयोगी प्रवृत्ति में लगा दे। डॉ० मोन्टोसोरी को यह बात पसन्द थी उसको अपने विचारों के अनुसार प्रयोग करने की इच्छा थी और उसके लिये विधयो की जरूरत थी और वे उसको इसी तरह से मिलने वाले थे अतएव उसमें टालमोना की विनंति स्वीकार करली और राज्य की नौकरी छोड़ कर गरीब लोगों के बालकों को शिक्षा देने का कार्य अपने हाथ में लिया। इसका परिणाम यह हुआ कि सन् १९०७ के जनवरी महीने में उसने प्रथम ही प्रथम बालगृह स्थापित किया। उस वक्त लोगों का ध्यान इस तरफ जरा भी प्राकर्षित नहीं हुआ था। डा० मोन्टीसोरी ने उन मंदमति बच्चों को शिक्षा देने के लिये भिन्न २ तरह से अपने शिक्षा सम्बन्धी विचारों के साधनों की योजना की। यहां उसने दो वर्ष तक (१८९८ से १९००) तक काम किया। इस कार्य में उसको अपूर्व विजय मिली ।
एक समय एक ऐसा बनाव बना कि एक मंदबुद्धि बालक सार्वजनिक शाला की परीक्षा में साधारण बुद्धि के बालक से ऊचे नम्बर और अधिक नम्बर से बहुत ही सहलाई से उत्तीर्ण हुआ। मूढ बालकों के लिये डॉ. मोन्टीसोरी की योजना-पद्धति से वह बालक शिक्षित था। इसके पश्चात् तो ऐसा कई दफा हुआ। जितने मूह बालक परीक्षा के लिये भेजे गये उतने के