Book Title: Mahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
View full book text
________________
को, और धर्म को उपयोगी होंगे "पुत्र कामः स्वदाटेष्यधिकारी " इस प्राचीन सूत्रानुसार एक तेजस्वी बालक और बालिका को देश शरण में रख कर जो स्त्री पुरुष अपनी कामचेष्टा बंध कर देते हैं और निर्मल ब्रह्मचर्य मार्ग को अख्तियार करते हैं, वे गृहस्थाश्रम के ऊँचे शिखर पर विराजमान हो जाते हैं और वे प्रजा के अन्दर महान् प्रकाश डालते हैं। ऐसे महान् श्रात्मा जिस देश को अपनी जीवनचर्या से अलंकृत करते हैं वह देश भाग्यशाली गिना जाता है । यह गृहस्थाश्रम का ऊँचा आदर्श है । प्राचीन ऋषियों ने भी "धन्यो गृहस्थाश्रमः " आदि उक्तियों से इस आदर्श और महत्त्व पूर्ण गृहस्थाश्रम के गुण गान किये हैं । अतएव मनुष्य के पुनरुद्धार का मूल गृहस्थाश्रम के पुनरुद्धार में समाया हुआ है ।
समय के प्रवाह में
व्याह का कानून भावनगर में जारी हो गया
(१) ब्याह के लिये योग्य उमर पुरुष १८ वर्ष और स्त्री १४ वर्ष की रखी गई है।
(२) ४५ वर्ष तक का पुरुष व्याह कर सकेगा । इस उमर के बाद कोई पुरुष ब्याह करना चाहे तो उसकी उमर से आधी से कम उमर की स्त्री अथवा कन्या के साथ ब्याह नहीं कर सकेगा ।
उपर के दोनों कानून के खिलाफ जो बर्तेगा उसको तीन मास का कारावास और रु० ५०० तक का दंड होगा ।
बाल-लन - निषेध
हमे यह जान कर अनिन्द हुआ है कि काठियावाड़ प्रान्त में वांकानेर रियासत ने एक आज्ञा निकाली है कि कोई भी व्यक्ति १७ वर्ष के लड़के व १३ वर्ष कन्या की उम्र से कम उम्र में ब्याह शादी नहीं कर सकेगी । इस भाज्ञा के विरुद्ध जो करेगा उस पर एक सौ रुपये का दण्ड ( जुर्माना ) होगा । हम उक्त रियासत को इसके लिये अभिनन्दन देते हैं और अन्य रियासतों को प्रार्थना करते हैं कि वे भी बाल - लग्न की रुकावट के लिये शीघ्र उपाय करें ।