Book Title: Mahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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( १७ )
कदापि पत्नी के सम्बन्ध में कुछ अनुचित बात सुनी जाय तो उस पर पति को जल्दी नहीं करना चाहिए। जगत विचित्र है, लोक प्रवाह बेदब है। दुनिया दोरंगी है। प्रत्यक्ष भी झूठा निकल जाता है और भ्रान्ति, दृष्टिदोष, अज्ञान, असावधानता तथा ईर्षा, द्वेष और असहिष्णुता आदि दोषों के कारण भी अक्सर विचित्र अफवाह फैलने लग जाती है। इसलिए अति शीघ्रता करके अपनी पत्नी . के साथ अन्याय करना सर्वथा पाप है । सारी अयोध्या नगरी ने राम- पत्नी सीता के सम्बन्ध में जो अनुचित बात फैलाई थी वह निस्सन्देह झूठी थी । इस तरह लोगों में अनेक विचित्र प्रकार की बातें फैल जाती हैं जो वास्तव में झूठी होती है, तो भी दुनिया का प्रवाह उस तरफ झुक जाता है। अक्सर पति, पत्नी के सम्बन्ध में भी संशय प्रकृति वाले होते हैं इससे अक्सर उनकी तरफ से उनकी पत्नियों को अन्याय मिलता है । अच्छे गिने जाने वाले पुरुष भी अक्सर उनकी पत्नियों पर उनके बहमी स्वभाव की वजह से अन्याय करते हैं। इसलिए ऐसे विषय में समझदार पति को जरा भी शीघ्रता नहीं करना चाहिए। गम्भीर हृदय से, वीरता से उसका निरीक्षण करना चाहिए ।
कदापि साधारण भूल जो मनुष्य मात्र से हुआ करती है मालूम हो जाय तो पति को खामोशी धारण करना चाहिए और इससे उसकी आत्म उदारता का परिचय मिलेगा । वह पति खुद भी रोज ढेर की ढ़ेर भूलें करता है अतः वे भूलें भी उसके हृदय में विलीन हो जाना चाहिए। सिर्फ उसको युक्ति पूर्वक प्रेममय शब्दों से अपनी पत्नी को इशारा कर देना चाहिए। विशेष भूल मालूम होते ही उसके मूल कारण की परिस्थिति मालूम करनी चाहिये । उस कारण में अपनी आत्मदुर्बलता का समावेष होता हो तो स्वयं को जागृत हो जाना चाहिये और विचित्र संयोगों में अच्छे अच्छों का भी पानी हो जाने का गम्भीर खयाल कर, मन को शान्त कर, अन्दर के प्रेममय रुख को सम्पूर्णता से • सम्हालने के साथ २ बाहर से अप्रसन्नता और कोप का भाव दर्शा कर उसका उचित तौर से दमन करना चाहिए जिससे ऐसी भूल फिर न होने पावे ।
पत्नी, पति की प्रियतमा और सच्ची प्रियतमा होने पर भी पति को उसका गुलाम या दास नहीं बनना चाहिए, अपनी विचक्षण दृष्टि, पौरुष तथा श्रात्मसम्मान के भाव उसकी जानकारी से बाहर नहीं रहने चाहिए ।