Book Title: Mahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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लिए कहते हैं कि समझदार संतोषी, मधुर भाषिणी, पति के चिस के अनुसार कार्य करने वाली और कुलोचित रीति के अनुसार खर्च करने वाली सद्गृहिणी दूसरी लक्ष्मी है।
खराब जोड़ा होने के कारणों में एक खास कारण ज्योतिषी का जोश मी है उसके वचन में भोले मनुष्य बहुत श्रद्धालु होते हैं कि वर बघू कितने ही विषमं क्यों नहीं हों एक दूसरे से विपरीत हों तो उनके विचार सिर्फ ज्योतिषी के जोश के आधार पर उनको लग्न ग्रन्थी में जोड़ देते हैं । जो युगल एक दूसरे से साफ तौर पर विरुद्ध दिखता हो अथवा जो साफ तौर से अयोग्य दिखता है उनको सिर्फ जन्म कुण्डली के मिलान पर लग्न योग्य समझा जावे अथवा उनको विवाह के योग्य समझना ही पहिले दर्जे की मूर्खता है जहां ज्योतिषी के जोश में ७० वर्ष के बुड्ढे के साथ १२ वर्ष की कन्या का मेल हो जाता है वहां पर उस ज्योतिषी की क्या कीमत समझना चाहिए ? कुण्डली की आड़ में बहुत से पण्डित कहे जाने वाले मनुष्यों की तरफ से बहुत अनर्थ हुआ करते हैं, इससे दम्पती जीवन पर दारुण प्रहार हुआ करता है यदि कुण्डली का उचित उपयोग किया जाय तो दिन दहाड़े ऐसी लूट नहीं चल सके वस्तुतः जन्म कुण्डली की अपेक्षा गुण कुण्डली को अधिक महत्व देना चाहिऐ ।
प्राचीन काल में स्वयंवर प्रथा थी और वर वधू एक दूसरे के गुणों को जान कर अपने भविष्य जीवन को निश्चित करते थे और अखण्ड स्नेह श्रद्धा के साथ अपनी जीवन-यात्रा सफल करते थे। परन्तु आज वस्तु स्थिति बदल गई है, पुत्र पुत्री के संरक्षक अपनी इच्छा तथा सहुलियत के अनुसार विवाह करने लगे इसीसे उनकी सम्मति नहीं ली जाने लगी, तभी से अधिकांश दम्पती जीवन की कैसी दुर्दशा हो रही है जिसको पाठकगण अच्छी तरह से जानते हैं। स्त्री पुरुष में परस्पर मनो मिलन न हों, स्नेह श्रद्धा न हों और उनके घर के आँगन में कलह कोलाहल सदा चलता रहता हो, क्या इस जीवन को शान्त जीवन कह सकते हैं ?
हरएक विचारवान समझ सकता है कि विवाहिक जीवन को सुखमय बनाना यह सिर्फ पत्नी की बात नहीं है । जब तक पति पत्नी प्रयत्न न करें, और अपने आचार विचार का ध्यान न रखें तब तक उनको इस विषय में सफलता नहीं मिल सकती है ।