Book Title: Mahasati Dwaya Smruti Granth
Author(s): Chandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
Publisher: Smruti Prakashan Samiti Madras

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Page 16
________________ मुनिजी म. सा. एवं परम विदुषी महासती श्री उमरावकुवंर जी म. सा. 'अर्चना' की सेवा में प्रस्तुत कर उनसे आवश्यक मार्गदर्शन प्राप्त कर लें। साथ ही उनके निर्देशों का यथासम्भव पालन किया जावे। विद्वद्वर्य आचार्य श्री देवेन्द्र मुनिजी म. सा. ने ग्रंथ की समस्त सामग्री का अवलोकन किया और अपने अमूल्य सुझाव दिये। आपके अतिरिक्त श्रद्धेय उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि म. सा. के विद्वान शिष्य श्री रमेश मुनि जी शास्त्री ने भी प्राप्त लेखों का अवलोकन किया। आपने भी अमूल्य सुझाव देकर हमारा मार्गदर्शन किया। परमविदुषी महासती श्री उमराकुवंर जी म. सा. 'अर्चना' एवं उनकी सुयोग्य शिष्या डॉ. श्री सुप्रभाकुमारी जी म. 'सुधा' ने भी ग्रंथ की प्राप्त सामग्री का अवलोकन कर बहुमूल्य सुझाव देकर हमारा मार्गदर्शन किया। ग्रंथ में हमने सुझावों को पूर्णतः क्रियान्वित करने का पूरा-पूरा प्रयास किया है। जिससे ग्रंथ सुन्दर एवं उपयोगी बन गया है। ऐसी हमारी मान्यता है। जैसा कि सर्वविदित है, यह स्मृति ग्रंथ परम विदुषी महासती श्री चम्पाकुवंर जी म.सा. की स्मृति में प्रकाशित हो रहा था किन्तु विधि के विधान के आगे किसी का वश नहीं चलता। अभी ग्रंथ का कार्य आरम्भ हुआ ही था कि क्रूर काल ने अध्यात्म योगिनी महासती श्री कानकुवंर जी म. सा. को अपना ग्रास बना लिया। एकाएक घटी इस घटना ने सबको झकझोर दिया और तत्काल निर्णय लिया गया कि अब यह स्मृति ग्रंथ महासती द्वय स्मृति ग्रंथ के रूप में प्रकाशित करना है। इस निर्णय के परिणाम स्वरूप ग्रंथ के आकार में भी कुछ परिवर्तन हुआ है, जो स्वाभिक है। इस प्रकार अब यह ग्रंथ अध्यात्म योगिनी महासती श्री कानकुवंर जी म. सा. एवं परमविदुषी महासती श्री चम्पाकुवरंजी म. सा. की पावन स्मृति में महासती द्वय स्मृति ग्रंथ के रूप में आपके हाथों में है। इस ग्रंथ के लिये आचार्य सम्राट श्री आनंद ऋषिजी म. सा., आचार्य श्री देवेन्द्र मुनिजी म. सा., श्रमण संघीय सलाहकार श्री रतन मुनिजी म. सा., उपप्रवर्तक मुनि रजी म. 'भीम' श्री महेन्द्र मुनिजी म. परम विदुषी महासती श्री उमरावकुवर जी म. सा. 'अर्चना' आदि का आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन तथा महासती श्री बसंत कुवंर जी म. सा., महासती श्री कंचनकुवंर जी म. सा. एवं महासती श्री चेतन प्रभाजी म. सा. की प्रेरणा और महासती श्री सुमन सुधाजी म. सा. तथा नवदीक्षिता महासती श्री अक्षय ज्योति जी म. सा. का सतत सहयोग मिलता रहा। जिसके लिये मैं हृदय से कृतज्ञ हूँ। यदि देश भर के लब्ध प्रतिष्ठित विद्वानों का सहयोग नहीं मिला होता तो स्मृति ग्रंथ की योजना को मूर्तरूप नहीं मिल पाता। उन सभी विद्वान बंधुओं के प्रति मैं हृदय से आभार प्रकट करता हूँ जिन्होंने इस ग्रंथ में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी न किसी प्रकार का सहयोग प्रदान किया है। उन विद्वान बंधुओं से क्षमा चाहता हूँ.. जिनके लेख अपरिहार्य कारणों से प्रकाशित नही हो सके हैं। वे इसे अन्यथा न लेते हुए अपना आत्मीय सहयोग भाव बनाये रखें। (१५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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