Book Title: Mahapurana Part 2
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 17
________________ भूमिका दमधर और मतिसेन थे । देवयोगसे धूपके धुएंस वसगंध दम्पति मर जाते है और उत्तर कुरुभूमिमें अग्म सेते हैं। स्वयं ऋषभ तीर्थकर कहते है भूलतः 1. मैं जयवर्मा था 1 2, फिर धर्मका आचरण कर विद्यापरेन्द्र हुवा। 3. फिर महाबल टुमा । स्वयंशिसे धर्म संबित किया । 4. ईशान स्वर्ग में ललितांग । 5. च्युत होकर वनजंघ 1 6. कुम्भूमिका मनुष्य । 7.धीधर देव । 8. विधि। 9. अहमेन्द्र। 10. वचनाभि । 11. सर्वार्थसिदिमें महमेछ। और अब तीर्थकर। इसी प्रकार I, निर्नामिका 2. ललितांगको पत्नी 3. वनजंघकी श्रीमती। 4. स्वयंप्रभ देव 5.केशव 6. प्रतीन्द्र 7. घमदेव 8. सर्वार्थसिद्धि अहमेन्द्र 10. राजा यांस जो कुरुवंशके सरोवरका हंस है 1 27-9, पस्तुतः 'नाभेयरित' का उत्तरार्द्ध ऋषभ तीर्थकर और उनसे सम्बद्ध प्रमुख व्यक्यिोंके पूर्वजन्म कपनोंसे भरा पड़ा है। प्रारम्भमें वर्णाश्रम, राजनीति और समाजव्यवस्था, विभिन्न दर्शन और संसार स्वरूपका कपन है। जयकुमारका आख्यान जयकुमार, कुरुवंशी राजा सोमप्रभका सबसे बड़ा पुत्र है जो अपने चौदह भाइयोंमें जेठा है । राजा श्रेयांस उसके चाचा थे। एक बार वह नन्दन वालो नागफे लोरेको लनि पर्म मानते हुए देखा है.! सालभर बाद, जब वह नन्दनवन में जाता है तो देखता है कि नाग नहीं है, और नागिन किसो दूसरी जातिके नागसे कोड़ारत है। जब उसे लीलाकमलसे आहत करता है। नामिन वहांसे भाग जाती है। राजा गजभवन वापस भाता है। रातमें वह नागिनका किस्सा अपनी पत्नीको बताने जा रहा था कि एक देव अवतरित होकर उसे नागिनको चोट पहुँचानेको बात कहता है। वह बताता है कि मैं ( मार नाम) भवनवासी नाग हुआ हूँ तथा नागिन गंगामें काली हुई है । नामदेव जयकुमारको उपहार देता है। एक मन्त्री जयको काशीराजकी कन्या सुलोचनाके स्वयंवरकी बात करता है। अयकूमार स्वयंवरमें सम्मिलित होता है। सुलोचना जयकुमारका वरण करती है । भरतपुत्र अर्ककीर्ति कुद्ध होकर अकम्पन राजा धौर जयकुमारसे मिलता है यह जानते हुए भी कि जा कम्पा किसीका वरण कर ले तो उसका अपहरण करना नोतिविरुद्ध है 1 अर्ककीतिको युद्ध में मुंहको खानी पड़ती है । जयकुमार उसे बन्दी बनाकर छोड़ देता है ! बकम्पन अर्ककीतिको मनाना है और सुलोचनाकी बहन लक्ष्मीबतीसे उसका विवाह कर देता है। अर्ककीर्ति जब भरतके सम्मुख पहुंचता है तो यह उसकी आलोचना करता है। राजा अकम्पन अपने मन्त्री समतिके द्वारा राजा भरतके सम्मुख अपने तीन दोष स्वीकार करता है-यह कि उसने अर्कोतिको कन्या नहीं दी. यह कि उसने स्वयंवर किया. यह कि सुलोचनाने जयकुमारका वरण किया । यह कि परस्त्रीका अपहरण करनेवाले तुम्हारे पूत्रसे मेरे बेटेने युद्ध किया। भरतकी न्यायप्रियता और उदारता यह है कि वह मन्त्री के सम्मुख स्वीकार करता है कि वह पिता ऋषभकी जगह राजा सोमप्रभको मानता है। भरतके उत्तरसे कुरुवंशी सोमप्रभ और नागवंशी कम्पन राजा सन्तुष्ट हए । रास्ते लौटते समय राजा गंगाके तटपर डेरा डालता है। सुलोचनाको वहीं छोड़कर जयकुमार साकेत जाकर भरतसे भेंट करता है। मुलोचनाके हाथीको मगर पकड़ लेता है । वनदेवो उसका सवार करती हुई अपने पूर्वभवका परिचय देती है कि वह विन्ध्याचलके राजा विन्ध्यकेतुको पत्नी प्रियंगुथीको पुत्री विन्ध्यत्री है, जिसे पिलाने कलाएँ सिखानेके लिए तुम्हारे पास सौंप दिया था और एक दिन वनमें सांप के काटनेपर तुमने णमोकार मन्त्र सुनाया था। वह कालीका मी पूर्वभव ( नागिन ) सुनाता है। पर आकर विद्याधरकी जोड़ी देखकर दोनों मूच्छित हो जाते हैं। होश मानेपर मुलोचना पूर्वमवका कथन करती है जो इस प्रकार है : . पाोभापुरके राजा प्रजापालका सामन्त शक्तिषण था। उसकी पत्नी पटषीश्री थी। दोनों एक बालकको पालते है (जिसे सौतेली माके व्यवहारके कारण घरसे निकाल दिया गया पा) शक्तिषण अनागार वेलावती

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