Book Title: Lalit Vistara
Author(s): Haribhadrasuri, Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 19
________________ १५१ १५२ 'बाधि' शब्द का अर्थ * अभयादि ५ अपुनर्बन्धक को ही वास्तविक अभयादि की विशेषता १५४ गोपेन्द्र परिव्राजक का मत. १६ बोहिदयाणं लोकोत्तर भावामृत - औदार्यादि, विषयविषाभिलाषवैमुख्य १५९ १५४ विशेषोपयोग संपदा भगवान के द्वारा धर्मदेशना की योग्यता का अनुग्रह १५५ अनुग्रह क्या चीज है ? भगवान ही धर्मोपदेश-धर्मदान-धर्म रक्षण के अनुग्रह ६ तत्त्व-योनि धृति - श्रद्धा सुखा- विविदिषा विज्ञप्ति 'अभयदयाणं' आदि पांच पदों की संपदा का उपसंहार धम्मदयाणं करन द्वारा भावशासक १५५ धर्मदाता = द्विविध चारित्र धर्म के दाता १५६ श्रावकधर्म - ७ अणुव्रत, ३ गुणव्रत, ४ शिक्षाव्रत ११ श्रावक पडिमा - * १५० साधुधर्मः ५५८ १५० (१) धर्म क्षायोपशमिकादि भावरुप है। (२) सामायिकादि सम्बन्धी साधुक्रिया यह साधुधर्म की अभिव्यंजक है । (३) साधुधर्म सकलसत्त्वहिताशयामृत (४) अचिन्त्यप्रभावशाली भगवदनुग्रह प्रधान कारण है २१ धम्मदेसयाणं धमोंपदेश में कथित संसार-स्वरुप * संसार प्रज्वलितगृह समान है १६० दुर्लभ भव दुःखद विषयादि, चञ्चल आयुष्य * संसार की आग बुझाने के उपाय * धर्ममेघ- सिद्धान्तवासना तज्ज्ञसेवा १६१ मालाघटदृष्टान्त असपेक्षा जिनाज्ञाआधीनता - - प्रणिधानः साधुसेवा से धर्मशरीर का पोषण १६२ प्रवचनमालिन्य-रक्षण Jain Education International * विधिप्रवृत्ति-आत्मनिरीक्षण की उपायप्रक्रिया * निमित्तों की अपेक्षा १६३ १६४ १६५ १६६ १६९ १७१ असपत्र- असपत्न धर्मयोगों में प्रयत्न * उन्मार्गगमन आदि पर लक्ष - के पूर्वप्रतिकार - भयशरणादि दृष्टान्त सोपक्रमकर्मनाश, निरुपकर्मकर्मानुबन्धनाश २२ धम्मनायगाणं नायक अर्थात् स्वामी के ४ लक्षण के १६ गुणों का कोष्ठक | (१) अर्हद् भगवान द्वारा धर्म के वशीकरण । १७५ १७६ चारगुणः १. विधिपूर्वक प्राप्ति २. निरतिचार पालन ३. यथोचित धर्मदान ४. परापेक्षता रहितता अर्हद् भगवान द्वारा धर्मोत्तम प्राप्ति के ४ हेतु (१) तीर्थकरत्व - वरबोधि स्वयंबुद्धत्वादि (२) परार्थकरणशीलता (३) हीने के प्रति भी उपकार, (४) विशिष्ट तथाभव्यत्व अश्वबोधकथा - जिनमूर्ति निर्माण यह बोधिहेतु. (३) धर्मफल- परिभोग में चार हेतु ( १ ) सकल सौन्दर्य ( २ ) प्रातिहार्य - विभूति (३) समवसरणादि समृद्धि (४) समृद्धि का अनन्य आधिपत्य । (४) धर्मविघात-रहितता में चार हेतु - (१) अवन्ध्यपुण्यबीज (२) सर्वोत्कृष्ट पुण्य (३) पापमात्रक्षय (४) विघातकारणक्षय १७२ धर्म के दो अर्थ: (१) पुण्य (२) अज्ञानादिपापक्षय २३. धम्मसारहीणं १७३ धर्मसारथिता के ३ हेतु १७६ १७७ औदयिक - सम्यक प्रवर्तन पालन दमन (१) सम्यक्प्रवर्तन से सारथित्व कैसे ? १७४ सम्यक् प्रवर्तन के परस्पर सापेक्ष ४ हेतुः - (१) गाम्भीर्य (२) साधुसहकारि-लाभ संभवितस्खलनादि १८ For Private & Personal Use Only - धर्मसारथिपन के हेतु व प्रारम्भ ज्ञायोपशमिक धर्मः - (३) अनुबन्धप्रधानता (४) अतिचारभीरुता पालन की सिद्धि दमन ( वशीकरण) की सिद्धि के ३ हेतुः (१) धर्माविसंवादकत्व (२) फलपर्यन्तधर्मानुपरम (३) स्वाड्गोपचयकारीधर्म-स्वात्मीभवन - www.jainelibrary.org

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