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'बाधि' शब्द का अर्थ
* अभयादि ५ अपुनर्बन्धक को ही
वास्तविक अभयादि की विशेषता
१५४ गोपेन्द्र परिव्राजक का मत.
१६ बोहिदयाणं
लोकोत्तर भावामृत - औदार्यादि, विषयविषाभिलाषवैमुख्य
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१५४ विशेषोपयोग संपदा
भगवान के द्वारा धर्मदेशना की योग्यता का अनुग्रह १५५ अनुग्रह क्या चीज है ?
भगवान ही धर्मोपदेश-धर्मदान-धर्म रक्षण के अनुग्रह
६ तत्त्व-योनि धृति - श्रद्धा सुखा- विविदिषा विज्ञप्ति 'अभयदयाणं' आदि पांच पदों की संपदा का उपसंहार धम्मदयाणं
करन द्वारा भावशासक
१५५ धर्मदाता = द्विविध चारित्र धर्म के दाता १५६ श्रावकधर्म - ७ अणुव्रत, ३ गुणव्रत, ४ शिक्षाव्रत ११ श्रावक पडिमा
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१५० साधुधर्मः
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(१) धर्म क्षायोपशमिकादि भावरुप है।
(२) सामायिकादि सम्बन्धी साधुक्रिया यह साधुधर्म की अभिव्यंजक है ।
(३) साधुधर्म सकलसत्त्वहिताशयामृत
(४) अचिन्त्यप्रभावशाली भगवदनुग्रह प्रधान कारण है
२१ धम्मदेसयाणं
धमोंपदेश में कथित संसार-स्वरुप * संसार प्रज्वलितगृह समान है
१६० दुर्लभ भव दुःखद विषयादि, चञ्चल आयुष्य * संसार की आग बुझाने के उपाय * धर्ममेघ- सिद्धान्तवासना
तज्ज्ञसेवा
१६१ मालाघटदृष्टान्त असपेक्षा जिनाज्ञाआधीनता
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प्रणिधानः साधुसेवा से धर्मशरीर का पोषण
१६२ प्रवचनमालिन्य-रक्षण
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* विधिप्रवृत्ति-आत्मनिरीक्षण की उपायप्रक्रिया
* निमित्तों की अपेक्षा
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असपत्र- असपत्न धर्मयोगों में प्रयत्न * उन्मार्गगमन आदि पर लक्ष - के पूर्वप्रतिकार - भयशरणादि दृष्टान्त सोपक्रमकर्मनाश, निरुपकर्मकर्मानुबन्धनाश २२ धम्मनायगाणं
नायक अर्थात् स्वामी के ४ लक्षण के १६ गुणों का कोष्ठक |
(१) अर्हद् भगवान द्वारा धर्म के वशीकरण ।
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चारगुणः १. विधिपूर्वक प्राप्ति २. निरतिचार पालन ३. यथोचित धर्मदान ४. परापेक्षता रहितता अर्हद् भगवान द्वारा धर्मोत्तम प्राप्ति के ४ हेतु (१) तीर्थकरत्व - वरबोधि स्वयंबुद्धत्वादि
(२) परार्थकरणशीलता (३) हीने के प्रति भी उपकार,
(४) विशिष्ट तथाभव्यत्व
अश्वबोधकथा
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जिनमूर्ति निर्माण यह बोधिहेतु.
(३) धर्मफल- परिभोग में चार हेतु
( १ ) सकल सौन्दर्य ( २ ) प्रातिहार्य - विभूति (३) समवसरणादि समृद्धि
(४) समृद्धि का अनन्य आधिपत्य ।
(४) धर्मविघात-रहितता में चार हेतु - (१) अवन्ध्यपुण्यबीज (२) सर्वोत्कृष्ट पुण्य (३) पापमात्रक्षय (४) विघातकारणक्षय
१७२ धर्म के दो अर्थ: (१) पुण्य (२) अज्ञानादिपापक्षय २३. धम्मसारहीणं
१७३ धर्मसारथिता के ३ हेतु
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१७७ औदयिक
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सम्यक प्रवर्तन
पालन दमन
(१) सम्यक्प्रवर्तन से सारथित्व कैसे ?
१७४ सम्यक् प्रवर्तन के परस्पर सापेक्ष ४ हेतुः - (१) गाम्भीर्य (२) साधुसहकारि-लाभ
संभवितस्खलनादि
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धर्मसारथिपन के हेतु व प्रारम्भ
ज्ञायोपशमिक धर्मः
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(३) अनुबन्धप्रधानता (४) अतिचारभीरुता पालन की सिद्धि
दमन ( वशीकरण) की सिद्धि के ३ हेतुः (१) धर्माविसंवादकत्व (२) फलपर्यन्तधर्मानुपरम
(३) स्वाड्गोपचयकारीधर्म-स्वात्मीभवन
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