________________
(xviii)
तत्रादावुपयोगित्वान्नृपाणां मन्त्रिणां गुणाः।
प्रकाश्य च तथा तेषामेव शिक्षाश्च काश्चन॥१-२४॥ द्वितीय अधिकार के आरम्भ में कहा गया है राजा का प्रमुख कर्त्तव्य नीति का क्रियान्वयन है अतः उसका कथन किया जाता है -
नीतिप्रवर्तनं कृत्यं भूपालस्य तदुच्यते॥२.१.२॥ __ युद्ध, दण्ड तथा व्यवहार रूप से नीति तीन प्रकार की कही गई है। प्रथम नीति (युद्ध) को अवसरानुकूल, मध्य (दण्ड) और अन्तिम (व्यवहार) नीति को निरन्तर प्रयोग में लाना चाहिए। राजा की नीति के वर्णन में सर्वप्रथम युद्धनीति का वर्णन किया गया है। इसके बाद दण्डनीतिप्रकरण और अन्त में व्यवहारनीति का प्रतिपादन किया गया है।
व्यवहारनीति के सभी अठारह प्रकरणों के आरम्भ में उसके उस क्रम पर प्रतिपादन का औचित्य बताया गया है। व्यवहारविधि के प्रथम प्रकरण के बाद उल्लेख है कि पूर्व प्रकरण में ऋणादान के विषय में कहा गया। ऋण से उपलब्ध धन का अनेक लोग मिलकर व्यवहार आदि करते हैं, अतः सम्भूयोत्थान की रचना की जाती है। सम्भूयोत्थान में कोई साधारण द्रव्य का दान भी करता है इसलिए देयादेयव्यवस्था का निरूपण करने के लिए अब देयविधि की व्याख्या की जाती है। देयविधि में अदेय साधारण द्रव्य के व्यय के कारण उत्पन्न कलह में भाइयों का परस्पर दाय भाग हो इसलिए अब उसका विचार किया जाता है। दायभाग के कारण भाइयों में सीमा-विवाद होता है अतः उसके निर्णय के विषय में कहा जाता है। सीमा-विवाद में भृत्यों की भी आवश्यकता पड़ती है अतः इस प्रकरण में उनका तथा उनके वेतनादि का स्वरूप वर्णित किया जाता है। नौकरयक्त स्वामी नौकर के माध्यम से अथवा स्वयं क्रय-विक्रय भी करता है जिसमें वस्तु-परीक्षा के विना क्रय-विक्रय से उत्पन्न दुःख या पश्चात्ताप भी होता है इसलिए व्यापार से सम्बन्धित पश्चात्ताप का स्वरूप वर्णित किया जाता है। ___ पूर्व प्रकरण में क्रय और विक्रय की जाने वाली वस्तु की परीक्षा की समयमर्यादा का कथन किया गया है। परख कर खरीदे गये पशुओं में गाय-भैंस आदि भी होते हैं, उनको चराने के लिए नियुक्त सेवकों के दोष के कारण विवाद होता है अतः उसका वर्णन किया जाता है। सेवक के दोष से स्वामी की हानि का निर्देश किया गया उससे दुःखी कोई भी स्वामी ब्याज के लाभ के लिए अथवा धन की रक्षा के लिए अपने धन का कुछ अंश न्यास रखकर निर्वाह करता है। अतः निक्षेप के भेदों का यहाँ वर्णन किया जाता है। धरोहर रखे गये धन को कोई भी लोभी स्वामी की आज्ञा के बिना भी विक्रय करता है इसलिए उसका वर्णन किया जाता