Book Title: Khartar Gaccha Ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 14
________________ १४ wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww के 'विधिमार्ग' का नाम खरतरमत हुआ। ३. श्रावक पर्व के दिन तथा पर्व के अलावा जब कभी अवकाश मिले उसी दिन पौषध व्रत कर सकता है और भगवती सूत्र में राजा उदाई तथा विपाकसूत्र में सुबाहुकुमार ने पर्व के अलावा दिनों में भी पौषधव्रत किया था पर खरतरों ने मिथ्यात्वोदय के कारण पर्व के अलावा दिनों में पौषध करना निषेध करके उत्सूत्र की प्ररुपणा कर डाली एवं अन्तराय कर्मोपार्जन किया। ४. श्रावक जैसे तिविहार उपवास कर पौषध करता है वैसे एकासना करके भी पौषध कर सकता है और भगवतीसूत्र में पोक्खली आदि बहुत श्रावकों ने इस प्रकार पौषध किया भी था पर खरतरों ने एकासना एवं आंबिल वाले को पौषध व्रत करने का निषेध करके उत्सूत्र की प्ररुपणा कर डाली। ५. जब साधु को दीक्षा दी जाती है तब नांद (तीगड़े पर प्रभु प्रतिमा स्थापित करना) मांड कर विधि-विधान यानि तीन प्रदक्षिणा के साथ तीन बार जावजीव के लिये करेमिभंते सामायियं उच्चराई जाती है पर खरतरों ने श्रावक के इतर काल की सामायिक को भी तीन बार उच्चारने की उत्सूत्र प्ररुपणा कर डाली। ६. जैनागमों का फरमान है कि श्रावक सामायिक करे तो पहले क्षेत्र शुद्धि के लिये इरियावही करके ही सामायिक करे पर खरतरों ने पहले सामायिक दंडक उच्चरना बाद में इरियावही करने की उत्सूत्र प्ररुपणा कर डाली। ७. जैनागमों में साधु के लिये नौकल्पी विहार का अधिकार है, खरतरों ने उसका भी निषेध कर दिया। इत्यादि वीतराग की आज्ञा का भंग कर कई प्रकार की उत्सूत्र प्ररुपणा कर डाली जिसको सब गच्छवालों ने उत्सूत्र प्ररुपणा मानी है इतना ही क्यों पर भगवान महावीर के गर्भापहार नामक छट्ठा कल्याणक की उत्सूत्र प्ररुपणा के कारण जिनवल्लभसूरि को तथा स्त्री जिनपूजा निषेध के कारण जिनदत्तसूरि को श्रीसंघ ने संघ बाहर भी कर दिया था पर कहा जाता है कि 'हारिया जुवारी दूणों खेले' इस लोकोक्ति को चरितार्थ करते हुए उन्होंने और भी कई मिथ्या प्ररुपणा कर दी तथा आधुनिक खरतरों ने खरतरमत की उत्पत्ति का आदि पुरुष जिनेश्वरसूरि को बतलाने के लिये एक कल्पना का कलेवर तैयार किया है कि वि. सं. १०८० में जिनेश्वरसूरि पाटण गये थे, वहां राजा दुर्लभ की राजसभा में चैत्यवासियों के साथ शास्त्रार्थ किया, जिसमें जिनेश्वरसूरि खरा रहा, जिससे राजा दुर्लभ ने उनको खरतर बिरुद दिया और हार जानेवाले को कवला कहा इत्यादि पर खरतरों के किसी प्राचीन ग्रंथों में इस बात की गंध तक भी नहीं है और न किसी प्रमाण से यह

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